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________________ विदीर्ण कर उसके द्वारा उसमें प्रवेश कर गया । इस प्रकार जीव भाव को प्राप्त होने पर उसका भूती के साथ तादात्म्य हो जाता है। पीछे जब गुरु कृपा से बोध होने पर उसे अपने सर्व व्यापक शुद्ध स्वरुप का साक्षात्कार होता है ता उसे 'इदम्' इस तरह, अपरोक्ष रूप से देखने के कारण उसकी इन्द्र ' संज्ञा हो जाती है. . इस प्रकार ईक्षणसे लेकर परमात्माके प्रवेश पर्यन्त जो सृष्टि क्रम बतलाया गया है. इस ई विद्यारण्य स्वामोन ईश्वर सृष्टि कहा है। ईक्षणादि प्रवेशान्तः संसार ईश कल्पितः 1 इस श्राख्यायिका में । बहुतसी विचित्र बातें देखी जाती हैं । यों तो मायामें कोई भी बाल कुहलजनक नहीं हुआ करती, तथापि आचायका तो कथन है कि यह केवल अथवाद है । इसका अभिप्राय आत्मबोध कराने में है। __ यह लेख कल्याण प्रेस गोरखपुरसे छऐ शंकर भाष्य उपनिषद की भूमिका का है। उपरोक्त लेखसे यह सिद्ध है कि सृष्टि रचना का जो वर्णन है, वह जीवके शरीरादिको रचनाका ही घणन है। भारतके महान विद्वान् विद्यारण्य स्वामीने भी इसीको ईश सृष्टि माना है । यह श्रात्मा शरीर व प्राण प्रादिकी रचना किस प्रकार करता है इसका वर्णन हम विस्तार पूर्वक कर चुके हैं। फिर भी यहां हम एक प्रमाण उपस्थित करते हैं। पांच देव सुषिया तस्य ह वा एतस्य हृदयस्य पंचदेव सुषयः स योऽस्यप्राङ्सुषिः स प्राणास्त-चक्षुः स आदित्यस्तदेत तेजोऽनाद्यमित्युषासीत तेजस्व्यनादो भवति य एवं वेद । छा० उ० ३।१३।१
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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