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________________ ( २४ ) श्री यच्छता महिषाणामधो मा स्त्रीसरांसि मघवा सोस्थापाः || ऋ० ५ । २९ । ८ अर्थात् इन्द्र ! तू तीनसो भैंसों का मांस खा जाता है और तीन तालाब सोमरस के पी जाता है। अन्य अनेक मन्त्र भी उपस्थित किये जा जाते है श्रादि खानेका स्पष्ट तथा कथन हैं। यही कारण है कि इसको घोर भयानक देवता माना जाता था । यथा ये स्म पृच्वंति कुहसेति धोरमुतेमा वैषो अस्तीत्येनम् । ऋ० २ । १२ । ५॥ इसी इन्द्र को देवता मानने पर आर्य जाति में परस्पर कलह उत्पन्न हुआ। क्योंकि प्रथम सत्र देवता सात्विक और अहिंसक और भलाई के देवता थे । पूर्वोक मन्त्र में इन्द्र विरोधियों में मेम ऋषि का नाम आया है. यदि वे जनतीर्थंकर नेमीनाथ थे तो कहना होगा कि यह कलह अहिंसा और हिंसा के सिद्धान्तपर अवलम्बित थी। क्योंकि इन्द्र हिंसाकी प्रतिकृति है। * निरुक्त और इन्द्र | 'इन्द्र:' इरां ति इति वा । इरां ददाति इति वा । 1 * मत्स्य पुराण ० ४२ में इन्द्र को ही हिंसक यज्ञका श्राविष्क लिखा है । तथा ऋषियों का और देवोंका इस पर महान कलह हुआ था | इसका वर्णन प्रमाण सहित श्रागे लिखेंगे।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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