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________________ { ४१६ ) "नियतवादिनचाहुः"प्राप्तव्यो नियतिवलाश्रयेण योधी, मोऽवश्यं भवति नृणां शुभोऽशुभोवा । भूतानां महति कृतेऽपि हि प्रयत्ने, ना भाव्यं भवति न भाविनोस्ति नाशः || १ || वारुया-नियति धादी कहते हैं-निति बनाश्रय करके जा अर्थ प्राप्तव्य प्राप्त होने योग्य है. लो शुभ वा अशुभ अर्थ पुरुषों को अवश्यमेव होता है । जीवों के बहुत प्रयत्न के करनेसे भी जो नहीं होन हार है, वो कदापि नहीं होता है, और जो होन हार है तिसका कदापि नाश नहीं होता है ।। "भृत वादिनचाहु:" पृथिव्यापस्तेजोवायुरिति तत्वानि तत्समुदाय शरीरेन्द्रिय विषय संज्ञामदशक्कियच्चैतन्यंजलबुदवदवज्जीयो चैतन्यविशिष्ट कायः पुरुष इति । व्याख्या-भूत वादी कहते हैं--पृथिवी १ पानी र अग्नि ३ और वायु ४; ये चार तत्व हैं, तिनका समुदाय सा ही शरीरेन्द्रिय विषय संज्ञा है और मद शक्ति की सरें चैनन्य उत्पन्न होता है. जल के धुदबुद की तरह जीव है अचैतन्य विशिष्ट काया है सो ही पुरुष है इति । "अनेकवादिनचाहु: कारणानि विभिन्नानि कार्याणि च यतः पृथक् । तस्मात्रिबपि कालेषु नैव कर्मास्ति निश्चयः ।। १ ।। व्याख्या अनेक वादी कहते हैं--कारण भी भिन्न है. और कार्य भी भिन्न है. तिसवारने तीनों ही कालों बिप कर्मों की अस्ति नहीं है ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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