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________________ और मूल तत्वकी खोज करने वाले तत्व मानक मार्मिक विचार अन्य किसी भी धर्मके मूल ग्रन्थमं दिखाई नहीं देत । इतना ही नहीं, किन्तु ऐसे अध्यात्म विचारोसे परिपूर्ण और इतना प्राचीन लेख भी अब तक कहीं उपलब्ध नहीं हुआ है । इम लिये अनेक पश्चिमी पंडितोंने धार्मिक इतिहासको दृष्टि से भी इस सूक्त का अत्यंत महत्व पूर्ण जान कर आश्चर्यचकित हा अपनी अपनी भाषाओं में इसका अनुवाद यह दिखानेक लिग किया है , कि मनुष्यक मन की प्रवृत्ति हम नाशवान और नास-पास्मक मृष्टिके परे नित्य और अचिन्त्य ब्रह्म शक्तिकी ओर महज ही कैसे भुक जाया करता है। यह ऋग्वेदके दसवें मंडलका माँ सूक्त है. और इसके प्रारम्भिक शब्दांसे इसे ' नासदीय यूक्त' कहत है। यही सूक्त तैत्तिरीय ब्राह्मण (५ 1 ८16) में लिया गया है. और महाभारतान्तर्गत नारायणाय या भागवत-धर्ममें इसी सूक्तके आधार पर ग्रह यानं बतलाई गई है. कि भगवानको इक्छा पहल पहल सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई ( म भा. शो . ३४.८)] सर्वानुक्रमणिकार के अनुसार इस मुक्तका ऋषि परमेष्धि प्रजापनि है और देवता परमात्मा है. तथा इममें निष्प वृत्तके यानी म्यारह अक्षरों के चार चरगोंकी सात ऋचायें है । 'सत' और 'असत' शब्दों के दो दो अर्थ होते हैं, अतएव मृपिके मूलतत्वको 'सत्' कहनेक विषयमें उपनिषत्कारोंके जिस मनभेदका माल पहले हम इस प्रकरण में कर चुके हैं, वही मतभेदं ऋग्वेद में भी पाया जाता है उदाहरणार्थ इस मूल कारण के विषय में कहीं तो यह कहा गया है, कि एक सद्विप्रा बहुधा वदनि" (ऋ.१.१७४ ४६) अथवा "एक सन्तं बहुधा कल्पयन्ति (ऋ० १.११४. ५.)यह एक और सत् यानी सदैव स्थिर रहने वाला है . परन्तु उसी को लोग अनेक नामों से पुकारते हैं, और कहीं इसके विरूद्ध
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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