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________________ ( . ३६४ ) "कौनसे रुद्र है ? पुरुष दश प्रारण है, और ग्यारहवां आत्मा है। ये ग्यारह रुद्र हैं।' अर्थात् प्राण है। रुद्र हैं और इसलिये भव. शर्व, पशुपति आदि देवसा के सब सूक्त अपने अनेक अयों में प्राण वाचक एक ही अर्थ व्यक्त करते हैं। पशुपति शब्द प्राण वाचक मानने पर पशु शब्द का अर्थ इन्द्रिय ऐसा ही होगा। इन्द्रियों का घोड़े, गौवों, पशु आदि अनेक प्रकार से वर्णन किया मया है। अब प्राणको सत्ता कितनी व्यापक है उमका वर्णन निम्न मन्त्रों में दस्विंये। .. प्राण का मोठा चाबुक महत्तपो विश्वरूपमस्याः समुद्रस्य खोतरेत आहुः । यत एति मधु कशा रराणातत्प्राणस्तदमृतं निविष्टम् ।।२।। माता दित्यानां दुहिता बसुना प्राणः प्रजानाममृतस्य नाभिः । हिरण्यवर्णा मधुकशा घृताचीमहानगर्भश्चरति मत्येषु ॥४॥ (अ. १) "(अस्याः) इस पृथिबीकी और समुद्रकी बड़ी (रेतः) शक्ति तू है. ऐसा सब कहते हैं । जहाँसे चमकता हुआ मीठा चाबुक चलता है वही प्राण और वही अमृत है। आदित्योंकी माता वसुओंकी दुहिता प्रजाओंका प्राण और अमृतकी नाभि यह मीठा चाबुक है। यह तेजस्वी, तेज उत्पन्न करनेवाली और (मत्यैपुगर्भ ) मयों के अन्दर संचार करने वाली है। __इस मन्त्र में 'मधु कशा'; शब्द है । 'मधु का अर्थ मीठा स्वादु है और कशा' का अर्थ चाबुक है चाबुक घोड़ा गाड़ी चलाने वाले के पास होता है । यात्रुरु मारने से गाड़ी के घोड़े चलते हैं। उक्त मन्त्रों में 'मधुकशा अर्थात मीठे चावुकका वर्णन है। यह मीठा
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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