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________________ ( ३६२ ) मिलने के कारण प्रारा का ही प्रामय करता है, क्यों कि हे प्रिय शिष्य ! मन प्राण के साथ ही बंधा है ।। वसु, रुद्र, आदित्य प्राणा, वाव वसव, एते हीदं सर्व वासयंति ॥१॥ प्राणा वाव रुद्रा एते हीदं सर्व रोदयंति ॥ २ ॥ प्राणा बावादित्याः एते हीदं सर्चमाददते।।३।।(छां०३१६) "प्राण बसु है क्योंकि ये सब को बसाते हैं। प्रारण रुद्र हैं, क्यों कि इनके चले जाने से सब रोते हैं। प्राण आदित्य है क्यों कि ये सब को स्वीकार करते हैं । इस स्थान पर अर्थात् प्राण रुद्र है. क्यों कि ये इस दुषं को दूर करते हैं।" ऐसा वाक्य होता तो प्राणका दुःख निवारक कार्य व्यक्त हो सकता था । परन्तु उपनिषद् में . "एतेहीदं सर्व रोदयन्ति" अर्थात् ये प्राण जब चले जाने हैंतब वे सब को रुलाते हैं, इतना प्राणों पर प्राणियों का प्रेम है ऐसा लिखा है कि शतपथादि में भी रुद्र का रोदन धर्म ही वर्णन किया है, परन्तु दुःख निवारक धर्म भी उनमें उससे अधिक प्रबल है। इसका पाठक विचार करें इस प्रकार प्राणका महत्व होने से ही कहा है प्राणो है पिता, प्राणो माता प्राणो भ्राता प्राणः स्वसा, प्राण भाचार्गः, प्राणो ब्राह्मणः ॥ (छा० उ०७।१५५१) ___ "प्राण ही माता, पिता, भाई, बहन, आचार्य, प्राण आदि है।" ये शब्द प्राए का महत्व अता रहे हैं। (१) माता--मान्य
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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