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________________ { ३३८ ) चमार. अथवा म्लेच्छ, यवन श्रादि अन्य धर्मीय लोग नहीं श्रा सकते हैं, उस प्रकार पूर्व समय की यह बात होगी । इसलिारे भूत लोग यज्ञमंडपके आस पास अनकी इच्छासे यूपमें तडपने और बरसातमें भीगते हुए भ्रमण करते रहते होंगे। परंतु घंमडी आर्य शक्तिके अभिमानी देव इन भूतोंकी भूखसे पीडित अवस्थाका कुछ भी ध्यान नहीं करते थे । पाठक देख सकते हैं और विचार कर सकते हैं कि भूखे लोग इतना अपमान और कष्ट कितने दिन तक बरदाश्त कर सकते हैं? अंतमें इन भूत लोगोंने यज्ञमंडप पर पत्थर फेंके और एकदम अंदर घुस कर यज्ञकी बड़ी खराबी की।" ईश्वर विषयक आर्य समाजके महान् वैदिक विद्वान् श्रीमान् पं० सातबलेकर जी का मत । आप 'ईश्वरका साक्षात्कार' पुस्तकके प्रथम भागमें लिखते हैं कि "ये सभी (वैदिक) ऋषि 'ईश्वर विश्वरूप है ऐसा ही कह रहे हैं। पाठक यहाँ यह बात स्पष्ट रीतिसे समझे कि, ईश्वर विश्वमें ध्यापक है। ऐसा इनका भाव यहाँ नहीं है। प्रत्युत जो विश्वरूप दीख रहा है, या अनुभवमें पा रहा है, वही प्रत्यक्ष ईश्वरका स्वरूप है। ऐसा ही इनका कथन है । आज ईश्वरको अदृश्य माना जाता है. पर विश्वरूप दृश्य होनेसे वैदिक ईश्वर भी दृश्य ही है। यही उपनिषद् और गीताके 'विश्वरूप' वर्णनसे स्पष्ट होता है । आजकल की प्रचलित कल्पनासे यह सर्वथा विभिन्न है, इसमें सन्देह नहीं है।” वर्तमान मानतायें, (१) ईश्वर बहुत दूर है, (२) ईश्वर हरएक वस्तुमें है, (३) ईश्वर अन्दर है और बाहर भी है. (४) ईश्वर सनसें है और सब ईश्रर
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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