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________________ समयके भारतीय सम्राद् हिन्दुस्थानमें बहुत कम आते हैं. परन्तु उनका यहाँका कार्य भारत सचीव अथवा बड़े लाट साहेब करने है. ठीक उस प्रकार देव सम्राट भगवान इन्द्र स्वयं यहां कम आया करते थे, परन्तु यहांका सब कार्य उपेन्द्र अर्थान विष्णुदेव के सुपुर्द था, और इसी कारण उसका नाम "नारायण' (नर समूहोंमें गमन करने वाला ) था। इस नामका यह अर्थ बिलकुल स्पष्ट है और उस समयकी राजकीय सम्धा स्पष्ट बता रहा है। नराणां समूहो नारं तदयनं यस्थ । अमरटीका (भट्ठोजी०) १।१।१८ नरा भयनं यस्य । अमरटीका १।१।१८ आपो नारा इति प्रोक्ना पापो नरसूनवः । ता यदस्यायन पर्व तेज नारायण स्मतः मनु०१०१० (१) नरोंके समूहमें जाने वाला, (२) मनुष्योंमें जानेका स्थान है जिसका, वह नारायण कहलाता है, (३) 'नाराका अर्थ हैं नरोके पुत्र, उनमें जिसका गमन है उसको नारायण कहते हैं। इन सब श्रों का तात्पर्य यही है कि जो उपेन्द्र मनुष्योंके समूहोंमें आता जाता रहता है. उसको नारायण कहते हैं। इससे सिद्ध होता है कि देवोंके अध्यक्ष इन्द्र तो मानवोंके देशमें पाते जाते नहीं थे अथवा कम बाते जाते होतो । परन्तु यहाँ आने जाने का कार्य उपाध्यक्ष अर्थात् उपेन्द्रका ही था । उपेन्द्र इन्द्रावरज ( छोटा इन्द्र, इन्द्रसे छोटा अधिकारी), नारायण, विष्णु आदि नाम एक ही व्यक्ति के हैं। पुराणों में हमेशा नारायण भूमिके निवासियोंके दुःख हरण करता है. ऐसी कथायें बहुत सी पाती हैं, इस कथा भागका तात्पर्य यही है कि पूर्वोक्त देव राज्यके उपाध्यक्ष यहाँ पाते थे और भारतवर्ष के
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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