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________________ ( ३१८ ) 3 भी इसी जीवात्माको ब्रह्म कहा है श्रुतिमें 'एव' यह अत्र वारणार्थ अव्यय है, जिससे अन्यदेव विष्णु, शिव, प्रजापति श्र देवोंको ब्रह्म माननेका निषेध किया गया है। अतः यह सिद्ध है कि स्वात्मासे भिन्न ब्रह्म कोई अन्य जातीय पदार्थ नहीं है । यही अभिप्राय अथर्ववेद उपरोक्त मूक्तोंका है। उपनिषदोंकी श्रुतियाँ स्परूपेण उच्चस्त्ररसे घोषणा करती हैं किअन्योऽसावन्योऽस्मीति न सवेद । वृ० १/४/१० यथा पशुरेव स देवानाम् । वृ० १/४/१० येऽन्यथातो विदुरन्य राजा नस्ते चय्यलोका भवन्ति । छा ०७१२५/२ मृत्योः स मृत्युमाप्नोति । क० उ० २२११० अर्थात् जो यह जानता है कि परमात्मा अन्य है और मैं अन्य हूँ वह उस ब्रा यथार्थं स्वरूपको नहीं जानता । श्रपितु वह पशु के समान देवताओंका पशु ही हैं। जो अपनेसे ईश्वरको भिन्न जानते हैं, वे अन्य राजा वाले ) हैं अतः वे क्षीण लोक वाले होते हैं अर्थात् निरन्तर जन्मते गरते रहते हैं। तथा च जो अज्ञानी परमात्मा को अपने भिन्न ममता है वह मृत्युसे मृत्युको प्राप्त होता रहता है। विष्णुदेव 1. "वैदिक साहित्य में विष्णुदेवका भी मुख्य स्थान है। में विशेषतया यज्ञको ही विष्णु कहा गया है। विष्णुर्यशः । गो० उ० १|१२| ० ३ ३ ७१६ तैं विष्णुर्वैयज्ञः । ० १/१५ ० १३|१| ८८
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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