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________________ । ३०२ । अस्मान्जा पतित्व प्रतिपत्यू समुदापत् सर्वस्माद् आदी ओपद् दहत् । किम् प्रामङ्गा ज्ञान लक्षण सर्वान्पामना प्रजापतित्व प्रति वन्धकार भृतान । यस्मादेवं तस्मात्पुरुषः पूर्व मौषदिति पुरुषः । - अर्थात्-प्रजापति ने अपने पूर्व जन्ममें साधक अवस्था में सम्पक-कम ( चारित्र ) झान और सम्यक दशन द्वारा प्रजापति बनने का भावनासे. प्रजापतित्व के बन्धन भूत प्रज्ञानादि सम्पूर्ण पापीका दग्ध कर दिया था। इसीलिये इम्मका पुरुप कहते हैं। अश्रीन-पूर्वमें ऊपन दग्ध किया इसलिये पुरुष कहलाया। जिस प्रकार वैदिक पुरुष सूक्तमें पुरुषसे सब जग रचा गया है. यहाँ भी उस पुरुषसे जिस प्रजापति पदको प्राप्त किया है उसी प्रकार सम्पूर्ण सृष्टिको रचनाकी गई है। इसी पुरुष के धाता, प्रजापति, हिरण्यगर्भ. ब्रह्मा, विश्वसृज . विश्वकृत . श्रादि नाम बताये गये हैं । अत: ग्रह सिद्ध है कि पुरुप सूत आदि में तथा अन्य स्थानों जहाँ उपरत नागासे जगनकताका वर्णन है. वह ग्रही अन्तरात्मा पुरुप है । जिसको जैन दर्शनम अहन्त, केवली, जीवन मुक्त आदि कहा गया है। उसने अर्थात् प्रथम प्रजापतिने जीवीका सम्पूर्ण संसारकी वस्तुओंका ज्ञान कराया था. इसलिय उसका विश्वकन् , विश्वमृज , श्रादि नामोंसे भा सम्बोधन करते हैं और वास्तवमें न ना मृष्टि उत्पन्न हुई और न किसीने उत्पन्न की यह तो अनादि निधन है। विश्वकर्मा य इम विश्वा भुक्तानि जुहब पिहोतान्यसीदत पितानः। स आशिषाद्रविणमिच्छमानाप्रथाच्छदवरों आ विवेशा॥
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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