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‘अग्नि ई नः प्रथमजा ऋतस्य पूर्व आयुनि वृषभश्व धेनुः ।। ऋ० १० । ५। ७
अर्थात् अग्नि ही ऋतका प्रथम प्रचारक है। और वह पूर्व अवस्था में वृषभ औं धेनु है।
प्रथम अंगिरा ऋषि स्वमग्रे प्रथमो अगिरा ऋषिः । ऋ० १ । ३१ । १ के अने! श्राप प्रथम अंगिस ऋषि हैं। इसी प्रकार अनि प्रथम, मनोता अर्थात् राजा या विचारक है। व होने प्रथमो मनोना ।। ऋ५ ६ । १ । १ ३३३८ देव इसके सेवक हैं।
श्रीणि शता त्रि सहस्राणि अग्निं विशश्चदेवा नव चास
पर्यन ॥ ० ३ । ९ । ९॥ . . प्रथम अंगिरा यशियों में अग्नि को काष्ठ 'प्राहिसे उत्पन्न किया पुनः पशु पासाकोंने अन्नके लिये ।
प्रादेगिरा प्रथम दधिरे ।। ऋ० ११८३।४ वेदमें अग्नि शब्द ईश्वर वाचक नहीं है । प्रग्वेद माध्यमें बा- 'उनेशचन्द्रजी विद्यारल लिखते हैं कि"येदेषु अग्नि शमन यादि मानवः सं सूचितः । जडाग्निवन्हिस्यथा नरामिश्र अधयोधित इनि । नगाहे अग्नि' इति यत शतपथे अस्ति सम लोकपितामह, प्रमाण मेव बोधियितुं प्रयुकः, न पुनः परमेश्वर मिति । ईश्वविद्वान स गरिन वि' इत्यं प्रयोगान म्यान पब