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________________ ५ ܬܐ मनोमयः प्राण शरीर नेता प्रतिष्ठितोऽन्ते हृदयं सन्निधाय । तद् विज्ञानेन परिपश्यन्ति धीरा श्रानन्दरूपममृतं यद् विभाति || श२७ अर्थ-यह आत्मा मनोमय ( ज्ञानमय) है. प्राण और शरीर का नेता है, हृदय में स्थित है तथा अन्न प्रतिष्ठित है धीर लोग शास्त्र द्वारा उसे जानते हैं । अतः यह सिद्ध हैं कि यह आत्मा का प्रकरण और वर्णन है। पुरुष सूक्तकी अन्तः साक्षी भाष्यकारो ने इस पुरुषसूक्तके अनेक परस्पर विरोधी अर्थ किये हैं. अतः हम उनसे किसी परिणाम पर नहीं पहुँच सकते । इसलिये आवश्यक है कि हम इसकी अन्त: परीक्षा करें। जब हम इसकी अन्त: परीक्षा करते हैं तो हमे स्पष्ट विदित हो जाता है कि यहां वर्तमान ईश्वरका संकेत भी नहीं हैं। क्योंकि निम्न लिखित मन्त्र इस कल्पनाका उच्चस्वरसे विरोध कर रहे हैं। यथा-इस सूक्तके प्रथम मन्त्रमें ही आया है कि 'श्रतिष्ठद् दशांगुलम्' अर्थात् यह पुरुष दशांगुल ऊपर ठहरा है । इसका अर्थ करते हुये, महीधर व उत्रट आदि सभी प्राचीन भाध्यकारोंने लिखा है कि " दश च तानि अंगुलानि इन्द्रियाणि तथा च केचिद् दर्शागुल प्रमाणं हृदयस्थानम् । अपरेतु नासिकाग्रं दर्शा - गुलमिति ।" अर्थात् दश अंगुलिका अर्थ यहां दस इन्द्रियां हैं, उन इन्द्रियों से परे आत्मा है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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