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________________ तरह और बिजलीकी तरह धमकीला, है इसीम जीवात्माका निवास है। ......... . तस्याः शिवाया पध्ये तु परमात्मा व्यवस्थितः । . - मैत्रायणी उपनिषद्म यही बात लिखी है-- 'हृयाकाशमय कोश श्रानन्दं परमालयम् । मैंत्र० ६७ नारायण उपनिषद्का भी यही उपदेश है। .... दहं विपापं परवेश्मभृतं यत्पुण्डरीक पुरमध्यसंस्थम् । तत्रापि दहं गगन विशोकस्तस्मिन्यदन्तस्तदुपासितव्यम्।। ... अर्थात्-देहरूप पुरमें एक बहुतसी सूक्ष्म पुण्डरीक विराजमान है। उस पुण्डरीकमें जो परम देवता शोकतीत. पापहीन: गगन सदृश अधिष्ठित है उसकी उपासना करनी चाहिये । _ यह पर-देवता ही ब्रह्म है और इसीलिए देहको श्रद्धापुर कहते है. इस सम्बन्धमें छान्दोग्य उपनिषद्का यह उपदेश है-- - अथ यदिदम् अस्मिन् ब्रह्मपुरे दहरं पुण्डरीक वेश्मा दहरोऽस्मिन् अन्तर आकाशः । तस्मिन् यदन्तः तद् अन्वे-- पृव्यम् तद् विजिज्ञासितव्यम् । छान्दोग्य, ८१२१ इस ब्रह्मपुर ( देव ) में क्षुद्र पुण्डरीक रूप एक घर है; वहाँ कोटासा अन्तर आकाश है। उसके जो भीतर है उसका अन्वेषण अनुसंधान करना चाहिये । लो ग्रह अन्तराकाश क्या चीत है ? श्री शंकराचार्य इसी आकाशको ब्रह्म कहते हैं। इस आकाशके सम्बन्ध छान्दोग्य उपनिषद् कहता है- ''
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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