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________________ जिस प्रकार सुदीप्त अग्नि से एक ही सी हजारों चिनगारियाँ निकलती है उसी प्रकार अक्षर पुरुष ( ब्रह्मसे ) विविध विचार उत्पन्न होते हैं. और उसी में विलीन होजाते हैं। - जिस प्रकार अग्निसे छोटी २ चिनगारियां निकलती है उसी प्रकार उस आत्मासे सब प्राण, सब लोफ, सम देवता और सब भूत ( इन्द्रियाँ ) निकलते हैं। ___ यह जीव देहरूप पुरमें रहता है। इसीसे सो हृदयका नाम हद् अयं है। . सवा एष आत्मा हदि । तस्य एतदेव निरुतम् । इदि प्रयमिति । वस्मात् हृदयम् । छान्दोग्य, ८३३ बह बास्मा हृदयमें विराजमान है । उस की निरुक्ति ऐसी ही है। वह हृदय में है, इसी लिये हृदयको रुद् अयं कहते हैं। गीतामें भी श्रीकृष्णने बारम्बार यही उपदेश दिया है हृदि सर्वस्य । धिष्ठितम् । गीता १३ । १७ . . सर्वस्प चाई हृदि सभिविष्टः । गीता १५ । १५ ईश्वरः सर्वभूताना हृदेशेऽजु तिष्ठति । गीता १८६१ बहू सबके हृदयमें अविदित है, सबके हृदय में सनिविष्ट है और सब भूसोंके लन्यमें विराजमान है। इस हृदयको उपनिषक्ने स्थान स्थान पर गुहा कहा हैगुहाहितं गङ्खरेष्टं पुराणम् । कहीं कहीं पर इसका नाम पुण्डरीक अथवा मृत्पा है
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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