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पशु, पक्षी, कीट, पतंग इत्यादिका उपलक्षण है । इस पुर-प्रवेशका वर्णन ऐतरेय उपनिषद्में इस तरह है
सोऽभ्य एव पुरुष समुद्धत्या मूर्छयत् । तमभ्यतपत् । तस्यामि तमस्य मुखं निरभिद्यत। नासिके निरभिद्येता अक्षिणी निरभिद्येतो की निरभिद्यतां त्वङ् निरभिद्यत हुइय निरभिवत नामिनिरभि पन शिश्नं निरभिद्यत । ऐतरेय११३-४
अग्निर्वाग्भूत्वा मुखं प्राविशत् वायुः प्राणो भूत्वा नासिके प्राविशदादियभानुभुलानिगी माविशादिशः श्रोत्रं भूत्पा कौँ प्राविशनोषधिवनस्पतयो लोमानि भूत्वा त्वचं प्राविशश्चन्द्रमा मनो भूत्वा हृदयं प्राविशन्मृत्युरषानो भूत्वा नामि प्राविशदापोरेतोभूत्वा शिश्न प्राविशत् । ऐतरेय रा४
स. ईचत कथं विदं महते स्यादिति । स ईक्षत कतरेण प्रपद्या इति । स एतमेव सीमानं विदार्यतया द्वारा प्रापद्यत । सैषा बितिर्नाम । स एतमेव पुरुष ब्रह्म सतममपश्यदिदम दर्शमिति । ऐत. ३।११-१३
जस (परमात्मा) ने जलसे पुरुषमूर्ति उधृत करके उसे संमूर्छित कर दिया-उसे अभितप्त किया। उस अभितप्त मूर्तिका मुख निभिन्न होगया. नाक निर्मिन्न होगई. कान निर्भिन्न होगये, स्वचा निर्मिन्न होगई, हृदय निर्भिन्न होगया, नाभि निभिन्न हो गई, शिश्न निर्मिन्न होगया। तब इन्द्रियों के अधिष्ठाता देवसाोंने उस मूर्तिमें प्रवेश किया। बाक इन्द्रियके रूप में अग्निने मुखमें प्रवेश किया। प्राणरूपसे वायुने नासिकामें प्रवेश किया। अनुरूप