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________________ ( २३३ ) (१) याज्ञिक. – ये लोग मन्त्रों का कोई अर्थ नहीं मानते थे । अपितु जादू टोने की तरह मन्त्रों का व्यवहार करते थे। तथा ये लोग मानते थे कि इन मन्त्रोंके बल से स्वर्गके देवगण यक्षों में आते हैं, और यजमान आदि को फल प्रदान करते हैं। 1 (२) भौतिक- ये लोग देवों को भौतिक अग्नि आदि हो थे तथा इनका पितादि का एक एक अभिमानी चेतन देवता मानता था । जैसा कि वेदान्त दर्शन में लाया है। (३) ऐतिहासिक – ये लोग अग्नि, इन्द्र, वरुण आदि वैदिक देवताओं को ऐतिहासिक महापुरुष मानते थे । (४) आध्यात्मिक, ये इन्द्र आदिका वर्णन आलंकारिक रूप सेयात्म शक्तियों का वर्णन मानते हैं । निरुक्तकार यास्क के समय तक इस मत का अधिक प्रचार नहीं हुआ था । उस समय के सभी वैदिक ऋषियों के मत से वेदों में माध्यात्मिक मन्त्र अत्यन्त अल्पतम थे । निरुफकार के समय के पश्चात् तथा उपनिषदों के समयमें इस मत का अधिक प्रचार हुआ । वैदिक नवीन मत उसके पश्चात् शनै-शनै नवीन मतों का आविष्कार हुआ । जैसे (१) अद्वैतवाद, सम्पूर्ण वैदिक देवों को एक ही सत्ता की शक्तियां अथवा रूपान्तर माना जाने लगा । (२) द्वैतवाद, ईश्वर, जीव और प्रकृति की प्रथक प्रथक सत्ता का स्वीकार |
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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