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________________ देवोंकी विलक्षणता इतरेतर जन्मानोभवन्ति, इतरेतरप्रकृतयः ! कर्मजन्मानः आत्मजन्मानः । आत्मैव एषां स्थोभवति आत्मा अश्वः आत्मा आयुधम् आत्मा इषवः आत्मा सर्वे देवस्य देवस्य । निरुक्त० ७।२ - ::.:.- अर्थ-देवता परस्पर जन्मा तथा इतरेतर प्रकृति ( कारगा ) होते हैं। देवता कमजन्मा ( कर्माधजन्मा ) होते हैं। क्योंकि इनके साना किन जो चोक लि, नई, कोहो इसलिये ये जन्म धारण करते हैं। तथा ये आत्म जन्मा है। अर्थात इनके जन्मके लिये किसी अन्यकी अपेक्षा नहीं हैं। स्वसंकल्पमात्रसे ही उनका जन्म होता है ! तथा देवता स्वयं ही अपना रथ है स्वयं ही अश्व हैं और वे अपने श्राप ही शस्त्रास्त्र आदि है । अभिप्राय यह है कि कायके लिये उन्हें किसी अन्यको सहायता की आवश्यकता नहीं अपितु संकल्पमात्रसे उनको सम्पूर्ण पदार्थ प्राप्त होते हैं। देवोंका श्राकार पुरुषविधास्युः । अपुरुषविधास्युः । अपिता उभयविधास्युः । अधिष्टातारः पुरुषधिग्राहाः । एष च श्रापानममयः नि० ७ । २ देवता के स्वरूपके विषयमें निस्तकार कहते हैं कि-देवताओं का श्राकार मनुष्यों जैसा है यह एक मन है। तथा दूसर याचाका कथन है कि-देवका प्राकार मनुषयोंसे भिन्न प्रकार
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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