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________________ ( २२४ ] भक्तों की- किमात्मिका भगवतो व्यक्तिः १ यदात्मको भगवान् । किमात्मको भगवान ? ज्ञानात्मकः शक्त्यात्मकः । इस रहस्यानाय सूक्तिमें भी व्यक्ति-पदका प्रयोग प्राचीन ही है। तत्र जितं ते पुण्डरीकाच पूर्णषाड्गुण्यविग्रह | आदि वाक्योंमें विम-शब्दका प्रयोग सुप्रसिद्ध है। देव-शरीर के समान भगवद् व्यक्ति कर्मज नहीं होती जगतापकाराप न सा कर्मनिमित्तजा । ( विष्णुपुराण ) प्रत्युत स्वेच्छामग्री होती है। श्रुति ने भगवद्विग्रहको --- 'मनामयः' ( छान्दोग्योपनिषद्) कहा है अर्थात वह विग्रह भगवानकी अपनी भावना के छानुसार ही है। श्रीमद्भागवतमें ब्रह्माजीका वचन है अस्यापि देव पुपो मदनुग्रहस्य स्वेच्छामयस्य न तु भूतमयस्य कोऽपि । Į इसका भी यही अभिप्राय है कि श्रीभगवद्वपु पाञ्चभौतिक नहीं हैं. प्रत्युत स्वेच्छामय हैं। श्रुतिले ईश्वरको -- 'कायपणमस्नाविरम् ।' कहकर उसकी प्राकृत देहहीनता बतायी हूँ और
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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