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भक्तों की-
किमात्मिका भगवतो व्यक्तिः १ यदात्मको भगवान् । किमात्मको भगवान ? ज्ञानात्मकः शक्त्यात्मकः ।
इस रहस्यानाय सूक्तिमें भी व्यक्ति-पदका प्रयोग प्राचीन ही है। तत्र
जितं ते पुण्डरीकाच पूर्णषाड्गुण्यविग्रह |
आदि वाक्योंमें विम-शब्दका प्रयोग सुप्रसिद्ध है। देव-शरीर के समान भगवद् व्यक्ति कर्मज नहीं होती
जगतापकाराप न सा कर्मनिमित्तजा ।
( विष्णुपुराण )
प्रत्युत स्वेच्छामग्री होती है। श्रुति ने भगवद्विग्रहको --- 'मनामयः'
( छान्दोग्योपनिषद्)
कहा है अर्थात वह विग्रह भगवानकी अपनी भावना के छानुसार ही है। श्रीमद्भागवतमें ब्रह्माजीका वचन है
अस्यापि देव पुपो मदनुग्रहस्य
स्वेच्छामयस्य न तु भूतमयस्य कोऽपि ।
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इसका भी यही अभिप्राय है कि श्रीभगवद्वपु पाञ्चभौतिक नहीं हैं. प्रत्युत स्वेच्छामय हैं। श्रुतिले ईश्वरको --
'कायपणमस्नाविरम् ।'
कहकर उसकी प्राकृत देहहीनता बतायी हूँ और