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________________ - महतो, व ऋभुवा, तथा इन्द्र श्रादिकी तरह यह अनि देव भी मनुष्यसे देव बने हैं यह प्रथम मन्त्रमें पतया बताया गया है। वरुण देवता। इयं दिग्दयिता राज्ञो वरुणस्य तुः गोपतेः ।। १ ।। याद. सामत्र राज्येन सलिलस्य च गुप्तये ।। कश्यपो भगवान् देवो वरुणं स्माऽभ्यषेचयत् ।। २ ।। महाभारत, उद्योगपत्रं, ०.११०॥ ___ यह ( दक्षिण ) दिशा गोपति वरुण राजाकी प्रिय है। जलनरोंका यह राज्य है और समुद्रकी रक्षाके लिये यह नियत है। भगवान कश्यप ऋपिने वरुणको यहाँ राज्याभिषेक किया था। . इससे सिद्ध होता है कि वरुण लोक भी समुद्र के पासके एक प्रान्नका नाम था: और वहाँका राजा वरुण कहलाता था। महाभारत उद्योगपर्व में कहा है कि 'नारद मातलि, को वाराणद्वीपकी वारुण्य नगरीमस गुजरकर नागलोकमें ले गये थे। वरुणेनाऽभ्यनुज्ञाती नागलोकं विचरतुः ॥ म. भा० उद्योग पर्व, अ०६८ - बताकी याज्ञा प्राप्त कर. ( नारद और मानली ) नागलोकमें विचरने लगे। ( महाभारतकी समालोचना, भाग, २) . तथा च ब्राह्मणग्रन्थों में भी लिखा है कि· वरुणः (श्राफा) यच्च धूच्या प्रतिष्ठस्त्तद वरुणोऽभवत् नं वा एतं चरणं सन्तं वरुण इत्याचक्षते परोक्षेण । परोक्षप्रिया इव हि देवा भवन्ति प्रत्यक्ष द्विपः । गो० पू० १७॥
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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