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________________ ( १७५ ) कालके भी कई शताब्दियों पहलेका है। और महाभारतके लेखक को भी इस ऐतिहासिक बातके विषय में संदेह सा उत्पन्न हुआ था । यहाँ तक कि महाभारतका लेखक संशय से प्रस्त था, कि उसको सर्प जातीके लोग मनुष्य थे या साँप थे इस विषय में भी संदेह था, इसीलिये वह किसी स्थान पर लिखता है कि साँप थे और किसी समय मनुष्यवत् लिखता है। इसी प्रकार देव दानवाविकोंके विषय में भी उनको कोई निश्चित कल्पना नहीं थी। परन्तु ओ कथाएँ उस समय प्रचलित थी उनका लेखन एक दूसरे के साथ ओड़कर उन्होंने किया । अब हमें ही विचार करके निश्चय करना चाहिये कि इतिहासकी दृष्टिसे उन कथाओं द्वारा क्या सिद्ध होता है। देवोंके विषय में जो बातें हमने यहाँ देखी उससे उनका वास्त विक स्वरूप स्पष्टतासे व्यक्त हुआ है, कि वे तिब्बत में रहते थे और भारतवासियोंकी मित्रतामें रहकर उनकी रक्षा करते थे और भारतवासियोंका भी उनसे प्रेम था । अर्थात् आर्य और देव परस्पर मित्र जातियाँ थीं और उनका कल्याण एक दूसरे पर अवलम्बित था । इससे भी सिद्ध होता है कि देव भी मनुष्य के समान मानव जातिके आदमी थे । स्वर्नी । गंगाका नाम "स्वर्ग नदी" किंवा "स्त्री" है। इसके अन्य नाम ये हैं | मंदाकिनी वियदूगंगा स्वर्नदी सुरदीपिका । अमरकोश १ । ४६. 1 “विद् गंगा स्वर्णदी, सुरदीर्गिका ये सब शब्द 'देवोंकी नदी' इस अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। सुरसरिद्र, सुरनदी, अमरगंगा, देवनदी" आदि शब्द भी इसी गंगानदीके वाचक हैं. ये शब्द
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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