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________________ कैसे हुश्रा ? यदि कहोगे कि इनको रचना किसने की तो हम कहेंगे कि परब्रहाको किसने बनाया। यदि परब्रह्म स्वयं सिद्ध है तो. जीव स्वर्गादि भी स्वयं सिद्ध है। आप कहेंगे कि इनकी और परब्रह्मकी समानता कैसे तो हम पूछगे कि इनकी समानतामे दोष क्या है ? लोकको नया पैदा करना उसका विनाश करना आदि बानों के बारे में तो हमने अनेक दोष बतलाए। अब यह तुम्हें बताना है पिः लांबली अनादि निधन भागनेमें क्या दोष है। वास्तवमै परब्रह्म कोई अलग चीज नहीं है, इस संसारमै जीव ही यथार्थ मोक्षमार्गका साधन करके सर्वज्ञ वीतराग होजाता है। (मोक्षमार्ग प्रकाशसे उद्धृत) अद्वैतवाद के विषय में सांख्योंका उत्तर पक्ष नाविद्यात् अवस्तुना बन्धयोगात् (सा० द. १।२०) ___ भावार्थ-वाणिक विज्ञानवादी योगाचार बौद्ध और नित्य विज्ञानवादी, वेदान्ती ये दोनों अद्वैत बादी हैं क्योंकि ये विज्ञानके सिवाय अन्य पदार्थ नहीं मानते हैं। वेदान्ती एक ही नित्य विज्ञानमय ब्रह्म मानते हैं। और योगाचार बौद्ध अनन्त क्षणिक विज्ञान व्यक्तियोंका एक ससान मानते हैं। ये दोनों अविधाको वन्धका हेतु मानते हैं। अर्थात् अविद्यासे पुरुषको संसारका बन्धन होता है। सांख्य उनर पत्तीरूपसे उसको पूछता है कि अविष्या वस्तु,सन् है या असन है। वह कहताहै अवस्तु असन है।तष सांख्य दर्शनाकार कहता है कि यदि अविद्या असा है तो उससे पुरुषको बन्ध नहीं हो सकता! स्वप्नमें देखीहुई रज्जुसे । असन रज्जुसे क्या कोई किसी वस्तुको बान्ध सकेगा ? कदापि नहीं । यदि कहो कि असन अविद्यासे बन्ध भी असन् अवास्तत्रिक होगा तो यह भी ठीक नहीं है । बन्ध यदि असत हे। तो उसकी निश्रुत्तिके लिये योगाभ्यास
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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