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________________ मकने है अगर जड़के भी यह भार पैदा हो मकते हैं तो पत्थर श्रादिक भी हने च हो । परन्तु चेतनः स्वरूप के ही वह दोन्नत हैं। श्रतः यह मात्र मागास पैदा नहीं है सकते । हां यद माग.को चनना ठहराया जग तो मन मकरे हैं लेकिन मायाको चेतन ठहरानेमें शरीसनिक मायाग्मे भिन्न होते हैं यह नहीं माना जा सका इसलि । उरका निश्चत करना चाहिय । भ्रमरूप मानने में कोई लाभ नहीं है। प्रतिवादीका यह भी कहना है कि इन तीन गुणा से प्रक्षा, विष्णु और म श य तीन देव प्रकट गा है। लेकिन ये उ.क नहीं है क्यं क गुण से गुण नो पैद होते हैं परन्तु गुणसे गुगी पैदा नहीं होते । पुषसे क्रोध होता है. ले केन क्र.बसे पुष होना नहीं देग्या गना । तथा इन गा का जब निया का रो ता इन उत्पन्न हुए ब्रह्मदक पून्य कैसे माने जा सकते हैं। दूसरी बात यह है कि मुश तो हैं मायामय मोर बह तानों श्रमके अवतार है. किन्तु इन गुणोंसे उत्पन्न होने के कारण ये भी मायःमय कहलाए । फिर इनको ब्रह्मक अवतार कसे कहा जा सकता है ? य गुण जिनमें थाइ भा हैं, उनसे तो इनमें छोड़ने लिमें कहा जाता है। और जो इन्हों गुणोंका मत है उनमें पूजा माना जाता है यह तर बड़ा भ्रम है। तमा इन नामोंके काय भी इन्ही रूप में देखे जाते हैं। कुतुहलादिक युद्धःदिक सेयनादि क्रिया उन रागादिगुरा से हात है इसलिये उन के गदिक गुगण में जूर एसा पद्धना चाहिये । इन को पूरप कहना यः परमेश कदनः किसी प्रक र म ठीक नहीं हैं। जैसे अन्न सलारो है येले . य भो हैं । यह यह कहना भी ठीक नहीं है कि, संसारी नो मायाक अधीन है इस लिव बिना जान ही उन काय को करते हैं किन्तु घमा दकके भाया अधीन है, ये जानकर इन कायों को करते हैं। क्योंकि माझ्याके
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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