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(६) सबक शत्रु मित्र. कुटम्बीजन हैं।
(५) कोई देवता सात्विक प्रकृति का है मां कोई. राजसी का तो कोई तामसी प्रकृति का है। जैसे इन्द्र मांस शराब आदि का सेवन करता है । इत्यादि उपरोक्त बातों से भी स्पष्ट सिद्ध है कि वैदिक देवताओं में से कोई भी ईश्वर स्थानीय नहीं हो सकता।
दिग्पाल . चारदिशाओं के चार दिग्पाल हैं।
अग्नि पूर्व का. यम. दक्षिण का. वरुण. पश्विम का सोम. उत्तर का।
पं. प्राणनाथजी गुरुकुल कांगड़ी के सुप्रसिद्ध स्रातक, डा० प्राणनाथ जी विगालंकार, डी. एस. सी. ( काशी) ने नागरी प्रचारिणी पत्रिका में एक लेखमाला. 'जम्बूद्वीप.का धर्म, इतिहास, तथा भूगोल के नाम से प्रकाशित करनी प्रारम्भ की थी। परन्तु शोक है कि वह आगे न चल सकी।
अदि ग्रह लेखमाला पुरी प्रकाशित हो जाती तो वैदिक विषय के अनेक रहस्य प्रकट हो जाते । अापने उसमें लिखा है कि---
निरुक्त के लेखक 'यास्क' को यह पता ही न था कि वेद कहां से आये और किन लोगों के पुजारियों तथा पुरोहितों ने उन्हें बनाया। उनके इतिहास का भी उनको ज्ञान न था । यदि गम्भीर रूप से यारक को पढा जाय तो यह भी मालूम पड़ जायगा कि उसको बहुत से संस्कृत शब्दों का उद्भव नक न मालूम था। जिस प्रकार ईसाई तथा पौराणिक धर्म को दबाने के