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(५३) री मा! नेमि गये किंह ठाऊं ॥ टेक॥ दिल मेरा कित हू लगता नहि, ढूंढ़ौ सब पुर गाऊं॥री मा. ॥ १॥ भूषण वसन कुसुम ना झुगावें, लहा कर दिया जारी ॥२॥ 'द्यानत' कब मैं दरसन पाऊं, लागि रहौं प्रभु पाऊं।।री मा.॥३॥
हे मां! नेमिनाथ कहाँ - किस स्थान पर चले गए?
मेरा मन कहीं भी नहीं लगता है । मैंने उन्हें सारे नगर और गाँवों में ढूंढ लिया है।
मुझे वस्त्र आभूषण-फूल आदि कुछ भी नहीं सुहाते । मैं कहाँ जाऊँ? किधर जाऊँ? क्या करूँ?
यानतराय कहते हैं कि राजुल कहती है कि वह समय कब होगा जब मैं उनके दर्शन प्राप्त करूँ और प्रभु के चरणों से लगन लगाये रहूँ।
द्यानात भजन सौरभ