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अपनो जानि मोहि तार ले, स्वामी शान्ति कुंथु अर देव ॥ टेक ॥
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अपनो जानकै भक्त पिछानकै सुरपति कीनीं सेव । कामदेव जिन चक्रवर्तिपद, तीन भोग स्वयमेव ॥ अपनो. ॥ १ ॥
तीन कल्यानक हथनापुरमें, गरभ जनम तप भेव ।
दशौं दिशा दश धर्म प्रकाश्यो, नास्यो अघ तम एव ॥ अपनो ॥ २ ॥
सहस अठोतर नाम सुलच्छन, अच्छ बिना सुख बेव । 'द्यानतदास' आस प्रभु तेरी, नास जनम मृत देव | अपनो ॥ ३॥
हे शांति, कुन्धु और अरहनाथ भगवान ! मुझे अपना जान करके संसार से पार लगादो, तार लो ।
आप तीनों ने कामदेव, जिनेन्द्र व चक्रवर्ती के पदों का स्वयं भोग किया हैं। इन्द्र ने आपको पहचान कर, अपना जानकर आपकी भक्तिपूर्वक सेवा की है।
आपके गर्भ, जन्म और तप तीनों कल्याणक हस्तिनापुर में हुए हैं। दसों दिशाओं में क्षमा आदि दश धर्म का प्रसार हुआ और भव्यजनों के पाप कर्मों का नाश हुआ है।
आपके १००८ नाम हैं, जिनके स्मरण से बिना इच्छा के सुख-लाभ होता हैं । द्यानतराय कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे आपसे यही आशा है कि आप मुझे मेरे जन्म-मरण का नाशकर इस दुश्चक्र से छुड़ा देंगे। मेरी इस भव-भ्रमण की आदत (देव) को नष्ट कर देंगे।
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खानत भजन सौरभ