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________________ आरती श्रीजिनराज की आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी॥ टेक ॥ सुरनरअसुर करत तुम सेवा। तुमही सब देवनके देवा ॥१॥ पंचमहाव्रत दुद्धर धारे। रागरोष परिणाम विदारे ॥२॥ भवभय भीत शरन जे आये। ते परमारथपंथ लगाये ॥३॥ जो तुम नाथ जपै मन माहीं। जनममरनभय ताको नाहीं॥४॥ समवसरनसंपूरन शोभा। जीते क्रोधमानछललोभा॥५॥ तुम गुण हम कैसे करि गावैं। गणधर कहत पार नहिं पावै ॥६॥ करुणासागर करूणा कीजे। 'द्यानत' सेवक को सुख दीजे ॥ ७॥ हे जिनेन्द्र ! हम आपकी आरती करते हैं। आपकी आरती हमारे कर्मों के समूह को घातनेवाली है नष्ट करनेवाली है, यह सज्जनों का हित करनेवाली है। सज्जनों के लिए हितकारी है। हे जिनेन्द्र ! सुर-असुर-नर सब आपकी वन्दना करते हैं, आप सब देवों के देव हैं, सब देवों द्वारा पूज्य हैं। हे जिनेन्द्र ! आपने पाँचों महाव्रतों को धारणकर, अत्यन्त दृढ़ता से उनका पालनकर, उनकी साधनाकर राग और द्वेष के परिणामों/भावों को भग्न कर दिया, छिन्न-भिन्न कर दिया। हे जिनेन्द्र ! जो संसार के भव - भ्रमण से भयभीत होकर आपकी शरण में आये आपने उन्हें परमार्थ का मुक्ति का मार्ग बताकर उसकी ओर उन्मुख/अग्रसर किया। है जिनेन्द्र ! जो आपको अपने मन में जपता है/स्मरण करता है उसे फिर जन्म ३७८ घानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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