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(३२३) मंगल आरती
राग भैरों मंगल आरती कीजे भोर, विघनहरन सुखकरन किरोर। टेक॥ अरहंत सिद्ध सूरि उवझाय, साधु नाम जपिये सुखदाय॥ मंगल.॥ नेमिनाथ स्वामी गिरनार, वासुपूज्य चम्पापुर धार। पावापुर महावीर मुनीश, गिरि कैलास नमों आदीश।। मंगल.॥१॥ शिखर समेद जिनेश्वर बीस, बंदों सिद्धभूमि निशिदीस। प्रतिमा स्वर्ग मर्त्य पाताल, पूजों कृत्य अकृत्य त्रिकाल ॥ मंगल. ॥ २॥ पंच कल्याणक काल नमामि, परम उदारिक तन गुणधाम । केवलज्ञान आतमाराम, यह षटविधि मंगल अभिराम ॥ मंगल. ॥ ३ ॥ मंगल तीर्थकर चौबीस, मंगल सीमंधर जिन बीस। मंगल श्रीजिनवचन स्साल, मंगल रतनत्रय गुनमाल ॥ मंगल.॥४॥ मंगल दशलक्षण जिनधर्म, मंगल सोलहकारन पर्म। मंगल बारहभावन सार, मंगल संघ चारि परकार॥ मंगल.॥५॥ मंगल पूजा श्रीजिनराज, मंगल शास्त्र पढ़े हितकाज॥ मंगल सतसंगति समुदाय, मंगल सामायिक मन लाय॥ मंगल.॥६॥ मंगल दान शील तप भाव, मंगल मुक्ति वधूको चाव। 'द्यानत' मंगल आठौँ जाम, मंगल महा मुक्ति जिनस्वाम॥मंगल.॥७॥
हे भव्य ! प्रात:काल सर्वमंगलकारी आरती कीजिए, वह सब विघ्नों को हरनेवाली है और करोड़ों सुख करनेवाली है। सदैव अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु का सुखकारी, सुख देनेवाले नाम का जाप कीजिए।
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धानत भजन सौरभ