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________________ आनन्दित करने के लिए चन्द्रमा के समान हैं तथा हे पुष्पदन्त ! आप पुष्पों की भाँति प्रफुल्लित करनेवाले हैं। हे शीतलनाथ ! आप शीतल होकर भी जड़ता का नाश करनेवाले हैं। हे श्रेयांसनाथ! आप पुण्य को जगानेवाले श्रेष्ठता के प्रतिरूप हैं । हे वासपूज्य. आप धरणेन्द्र द्वारा पूजनीय हैं और विमलनाथ की विमल कीर्ति सारे जगत में फैली है। हे अनन्तनाथ ! आप अनन्तगुणों को बढ़ानेवाले और अनन्त पापों का नाश करनेवाले हैं । हे धर्मनाथ! आप धर्म की वर्षा करनेवाले हैं, धर्ममय वातावरण प्रदान करते हैं । हे शान्तिनाथ आप शान्ति-प्रदायक हैं । कुंथुनाथ छोटे-छोटे जीवों के प्रति भी करुणा जागृत करनेवाले हैं। हे अरहनाथ ! आप विधिपूर्वक पूजनीय हैं । हे मल्लिनाथ ! आपने मोहरूपी मल्ल को जीत लिया है । हे मुनिसुव्रत ! आप मुनियों के द्वारा व्रत-पालन के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं । हे नमिनाथ! देव व मनुष्य आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप धर्मरूपी रथ की धुरी हैं। हे नेमिनाथ! आप भव की कालिमा को दूर करनेवाले हैं। हे पार्श्वनाथ! आप चारों गतियों के बंधन को छेदनेवाले हैं और भगवान महावीर आप महान वीरता की वृद्धि करनेवाले हैं । द्यानतराय कहते हैं इन चौबीस तीर्थंकरों को नामावली का सार्थक गुणगान व स्मरण परमानन्द पद (मोक्ष) का कारण व दाता है। हानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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