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(२९१) एक समय भरतेश्वर स्वामी, तीन बात सुनी तुरत फुरत॥टेक॥ चक्र रतन प्रभुज्ञान जनम सुत, पहले कीजै कौन कुरत ॥ एक.॥१॥ धर्मप्रसाद सबै शुभ सम्पति, जिन पूर्जे सब दुरत दुरत ॥ एक.।।२।। चक्र उछाह कियो सुत मंगल, 'द्यानत' पायो ज्ञान तुरत ।। एक.॥३॥
भरतेश्वर ने एक ही समय में ( एकसाथ) तान बात सुट्टै, वे तीन बात थी - उन्हें (स्वयं को) चक्ररत्न की प्राप्ति हुई, प्रभु को अर्थात् ऋषभदेव को केवलज्ञान हो गया और तीसरे उनको (स्वयं को) पुत्र-रल की प्राप्ति हुई। अब इन सबमें पहले किसका उत्सव किया जाए?
धर्म के प्रसाद से ही सब शुभ सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। जिनेन्द्र की पूजा से सभी पाप अविलम्ब दूर हो जाते हैं। अत: सबसे पहले जिनपूजा की, फिर चक्ररत्न की प्राप्ति का उत्सव और फिर पुत्र जन्म का मंगल उत्सव मनाया।
द्यानतराय कहते हैं कि भरत ने अपने ज्ञान से जानकर इसप्रकार उत्सव मनाया।
कुरत - कृत्य, कार्य; दुरत = पाप; दूरत = दूर भागे।
धानत भजन सौरभ
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