SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार सम्यक् व व्यवस्थित अर्थ लगाकर मन से गूढ अर्थों को समझने की, उनका निराकरण करने की चेष्टा करें । श्रुत का ज्ञान शंकासमाधान के लिए औषधि का ज्ञान होने के समान है। शंका-समाधान के लिए ही आचार्य कुंदकुंद सीमंधर भगवान के समवशरण में जाकर आये थे। कौन आचार्य सच्चे हैं और कौन मिथ्या हैं, तथा किनके ग्रन्थों को नित्य पढ़ना व आदर करना चाहिए और किनके ग्रंथ इसके सर्वथा विपरीत हैं व सम्यक्त्व का पोषण नहीं करते हैं । यह सत्य है और यह झूठ है, यदि तुम किसी प्रकार जान पाओ तो तुम झूठ का प्रतिपादन करनेवाले ग्रंथ को किसलिए पूजोगे? उन ग्रन्थों में जिन-जिन दोषों का, त्रुटियों का समावेश है उसे हटाकर, निकालकर शुद्ध करके रखो तथा उसी के अनुसार/अनुरूप अन्य ग्रन्थों का लेखन व प्रसारण करो। कोई अन्यमती अपने मिथ्या कथन की पुष्टि करे या उसकी संपुष्टि हेतु चर्चा या तर्क करे तो उसे कहो कि ग्रंथ में जो लिखा है उसे क्यों नहीं माना जाए? अर्थात् ग्रंथ को आगम प्रमाण मानकर उसे समझाओ, प्रत्युत्तर दो व अपना पक्षसमर्थन करो। इस हुण्डावसर्पिणी काल के प्रभाव से जैनों व उनके ग्रंथों के निंदक बहुत लोग होंगे। यह जानकर द्यानतराय कहते हैं कि आप मौन रहिए, निरर्थक विवादों में मत पडिए; क्योंकि यह जीवन सीमित व थोड़ा है, उसे विवाद में समाप्त मत कीजिए। वस्सु = आठ, विंग - व्यंग्य - गूढ़ अर्थ । ३२८ धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy