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________________ (२८३) सोहां दीव ( सोभा देवें) साधु तेरी वातड़ियां। टेक ।। दोष मिटावें हरष बढ़ावै, रोग सोग भय घातड़ियां। सोहां ॥१॥ जग दुखदाता तुमही साता, धनि ध्यावै उठि प्रातड़ियां॥ सोहां॥ २ ॥ 'द्यानत' जे नरनारी गावै, पार्दै सुख दिन रातड़ियां। सोहां ॥ ३॥ हे साधु ! तेरी बातें मन को सुहानी लगती हैं, अच्छी लगती हैं। इससे दोष नष्ट होते हैं, मिटते हैं और मन में प्रसन्नता बढ़ती है। ये रोग, शोक और भय को नष्ट करती हैं। सारा जगत दुःख ही उपजानेवाला है। एक तुम ही तो हो जहाँ सुख मिलता है। इसलिए सुबह उठकर जो तुम्हारा ध्यान करता है, वह ही धन्य है। द्यानतराय कहते हैं कि जो नर-नारी तेरा गुणगान करते हैं वे दिन-रात, सदैव सुख पाते हैं। धानत भजन सौरभ ३२५
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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