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________________ (२८१) भाई धनि मुनि ध्यान लगायके खरे हैं ।। टेक॥ मूसल भारसी धार पर है बिजुली कड़कत सोर करै है।। भाई ॥१॥ रात अँध्यारी लोक उरे हैं, साधुजी आपनि करम हरे हैं॥ भाई.॥२॥ झंझा पवन चहूँदिशि बाजै, बादर घूम घूम अति गाजैं। भाई ॥३॥ डंस मसक, बहु दुख उपराजै, 'द्यानत' लाग रहे निज काजैं। भाई.॥४॥ हे भाई! वे मुनि धन्य हैं जो ध्यानस्थ होकर खड़े हुए हैं। वर्षा ऋतु में मूसलाधार वर्षा हो रही है और चारों ओर बिजली कड़ककर, कौंधकर शोर मचा रही है, वातावरण को भयावना कर रही है। रात अँधेरी है, सुनसान अँधेरे में संसार भयावना लगता है। ऐसे में साधु खड़े हैं, तपस्या में लीन हैं और अपने कर्मों की निर्जरा कर रहे हैं। चारों ओर से तीव्र पवन के झोंके, वायु के सर-सर करके बहने से व परस्पर संघात से ध्वनि उत्पन्न करते हैं । बादल भी उनके प्रवाह के साथ घुमड़ जाते हैं, गर्जना करते हैं। वर्षाकाल में मच्छरों, डांसों की उत्पत्ति हो जाती है । वे डसते हैं, डंक मारते हैं, दुःख उपजाते हैं और विकल करते हैं। धानतराय कहते हैं कि उस समय भी वे मुनि अपने निज के काज में अर्थात् आत्मध्यान में लीन हो रहे हैं। इस प्रकार अपने कर्मों की निर्जरा करने में संलग्न हैं। धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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