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यह कर्मरूपी दुष्ट धन का लालच उत्पन्न करता है, दोष उत्पन्न करता है। जब वह चित में आता है तो प्राणों का नाश करता है। आप तो अन्तर की सब बात जानते हो। __हे दीनदयाल ! द्यानतराय कहते हैं कि मुझे, अपने दास को पहचान कर जगत में बाहर निकालो अर्थात् मुक्ति प्रदान करो।
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द्यानत भजन सौरभ