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(२४४) दि3 दान महा सुख पावै ॥ टेक॥ कूप नीर सम घर धन जानौं, क. बदै. अल्. एक जानै !!१!!... मिथ्याती पशु दानभावफल, भोग-भूमि सुरवास बसावै ॥२॥ 'द्यानत' गास अरध चौथाई, मन-वांछित विधि कब बनि आवै॥३॥
हे भव्य प्राणी ! दान देने से बहुत सुख प्राप्त होता है।
घर पर रखे हुए धन को कुएँ में पड़े जल के समान जानो, जो कि निकाले जाते रहने पर ही शुद्ध रहता है और बाहर न निकालने पर, वहीं पड़े रहने पर सड़ जाता है।
मिथ्यात्वी जीव भी दान की भावना के कारण भोगभूमि में व स्वर्ग में जाकर जन्म लेता है । धानतराय कहते हैं कि अपने ग्रास में से आधा अथवा चौथाया हिस्सा भी दान देने से मनवांछित फल प्राप्त हो जाता है। अर्थात् इतना अल्प दान भी कार्यकारी हो जाता हैं।
द्यानत भजन सौरभ