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________________ ( २०९ ) भजो जी भजो जिनचरनकमलको छांडि विषय आमोदै जी ॥ टेक ॥ भाग उदय नरदेही पाई, अब मत जाहि निगोदै जी ॥ विषय भोग पाहनके वाहन, भव- जलमाहिं उबो दें जी 'द्यानत' और फिकर तज भज प्रभु, जो चाहै सो सो दै जी ॥ भजो . ॥ १ ॥ ॥ भजो ॥ भजो ॥ २ ॥ ३ ॥ सभी इन्द्रिय-विषयों का त्याग करके श्री जिनेन्द्र के चरण कमल का भजन करो, वह आनन्ददायक है ।, भाग्य से नर - देह मिली है इसका सदुपयोग करो, जिससे फिर निगोद में न जाना पड़े। द्यानत भजन सौरभ विषयभोग तो पत्थर की नाव से समान हैं जो भवसमुद्र के जल में डुबो देती है । द्यानतराय कहते हैं कि सब प्रकार के विकल्पों से मुक्त होकर, चिन्ता छोड़कर प्रभु का भजन कर। ये ही मनवांछित फलदाता हैं । २३९
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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