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________________ ( २०१ ) प्रभु अब हमको होहु सहाय ॥ टेक ॥ ... तुम बिन हम बहु जुरा दुख पायो, अब तो परसे पाँय ॥ प्रभु ॥ ... तीन लोकमें नाम तिहारो, है सबको सुखदाय । सोई नाम सदा हम गावैं, रीझ जाहु पतियाय ।। प्रभुः ।। १ ।। हम तो नाथ कहाये तेरे, जावैं कहां सु बताय । बाँह गहेकी लाज निवाहौ, जो हो त्रिभुवनराय ॥ प्रभु ॥ २ ॥ 'द्यानत' सेवकने प्रभु इतनी विनती करी बनाय । दीनदयाल दया धर मनमें, जमतें लेहु बचाय ।। प्रभु ।। ३ ।। हे प्रभु! आप हमारे संहायक हो, आप हमारी सहायता करें। आपके बिना हमने बहुत काल तक युगों-युगों तक बहुत दुःख पाए हैं। अब हम आपके चरणों की शरण में आए हैं, अब आपके चरण-स्पर्श का लाभ मिला है। तीनलोक में आपका नाम, आपका सुयश फैल रहा है, जो हमको अत्यन्त सुख देनेवाला है। हम भक्तिभाव से सदैव उसी नाम का गुणगान करते हैं, पूजा करते हैं, अनुनय और विनय करते हैं। तेरे नाम का गुणगान करते हैं, आपको भाँति-भाँति से पूजाकर रिझाने का यत्न करते हैं । हे नाथ! हम तो आपके कहलाते हैं, आपको छोड़कर अन्यत्र हम कहाँ जावें यह बताओ। जिसने आपकी बाँह पकड़ी है अर्थात् आपकी शरण ली है उसकी मान-मर्यादा-प्रतिष्ठा का आप निर्वाह करें, आप तो तीनलोक के स्वामी हैं, नाथ हैं । हे दयानिधान, हे दीनों पर दयालु, हे प्रभु! द्यानतराय की इतनी-सी विनती है कि अपने मन में करुणा धारणकर हमें बार-बार यम के मुँह में जाने से छुटकारा दिलाओ, मृत्यु से हमारी रक्षा करो, अर्थात् जन्म-मरण के चक्र से बचाओ, मुक्त करो। द्यानत भजन सौरभ २३१
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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