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________________ धर्म का महत्त्व - हे प्राणी ! सबको धर्म हो सहायक है अन्य कोई नहीं (१४३) । हे जिय ! जैन धर्म धारणकर (२३९) । जो जैनधर्म धारण करता है वह आत्मिक सुख पाता है (२९९) । अनादि-अनन्त यह जैनधर्म सदा जयवन्त रहे (१५३)। विपरीत मान्यता - अरे भाई ! मुझे समझाओ कि किस देवता की भक्ति करने से सुख हित होगा (१७०)? बह कहा जाता है कि लोक में एक ब्रह्म है बही लोक का नियन्ता है यह बात मेरी समझ में नहीं आती (८९) । हे मित्र ! मुझे बताओ कि परमेश्वर की नीति-रीति क्या है ? क्या वही संसार के जीवों को जन्म देता है और दिमागही उड़े हा २012 ? - सदाचार दान-शील (आचरण)-तप-संयम - है भव्य ! निश्चय और व्यवहार से दान-तप-शील ये कल्याणकारी भावनाएं हैं: ये जैनधर्म का सार हैं (२३९) । इसलिए हे भाई ! तुम जप-तप करो, दान करो, संयम रखो, पर- धन और परस्त्री से दूर रहो (२४९) (२५०) । हे प्राणी ! जब तक धन है, शक्ति है, यौवन है तब तक दान- शील. तप करते रहो, इन्हें मत भूलो (२५१)। जप-तप का सुफल परलोक में तो मिलता ही है, यहाँ पर भी जप-तप करनेवाले को वीर कहा जाता है ( २५४) । इसलिए संयम करना चाहिए, संयम के बिना जीवन व्यर्थ हो जाएगा (२४३)। मन ही सब कार्यों का कारण है उसको वश में करो ( २५०) । जो मन को वश में कर लेता है वही मोक्ष सुख पाता है ( २५० ) । अरे ! दान देने से महान सुख की प्राप्ति होती है (२४४) । दान, शील, तप, पूजा के बिना जीवन व्यर्थ है ( २४६), इसलिए हे जिय ! तू अपने हृदय में दृढ़ता से शील (आचरण) को धारणकर, शील के बिना जप तप सब व्यर्थ हैं ( ३००) । भाई ऐसा जप करो कि पुन: जप करने की आवश्यकता ही न हो, ऐसा तप करो कि फिर तप करने की आवश्यकता ही न हो, ऐसे मरो कि फिर दोबारा मरना ही न हो, अर्थात् जन्म मरण के चक्र से ही छूट जायें (९१)। क्षमा अरे भाई सब पर क्षमा भान रख, बैर भाव तज (२९६) । धैर्य .. हे नर ! विपत्ति में धैर्य धारणकर ( २६६) ।
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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