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द्यानतराय कहते हैं कि हे भव्य! यदि तुम सुख चाहते हो तो इस क्रम का अनुसरण करो। मैं जो हूँ - सो मैं हूँ, ऐसे 'सोऽहं ' नाम के दो अक्षरों का जाप करके, हृदय में उसकी अनुभूति करके अपने में स्थिर होना ही इस संसार-समुद्र के पार होना है, अर्थात् मुक्ति का यही एकमात्र मार्ग है।
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धानत भजन सौरभ