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(६३) पावापुर भवि बंदो जाय ।। टेक ।। परम पूज्य महावीर गये शिव, गौतम ऋषि केवलगुन पाय॥१॥ सो दिन अब लगि जग सब मानें, दीवाली सम मंगल काय॥२॥ कातिक मावस निस तिस जागे, 'द्यानत' अदभुत पुन्य उपाय ॥३॥
हे भव्य ! तुम पावापुर में जाकर वंदना करो जहाँ से परमपूज्य भगवान महावीर का निर्वाण हआ है और गौतम गणधर को कैवल्य (गुण) की प्राप्ति
तब से अब तक उस दिन को सब विशेष मानने लगे हैं। वह दिन मंगल. उत्सव के समान मनाया जाता है, उस दिन दीपावली मनाते हैं जो मंगलकारी है - मंगल को करनेवाला है।
द्यानतराय कहते हैं कि जो कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि में जागते हैं, आत्मरुचि जागृत करते हैं वे अद्भुत पुण्य के भागों होते हैं।
धानत भजन सौरभ