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________________ गर्भ अध्ययन ३९. गब्भऽज्झयणं सूत्र १. गब्भाइ पयाणं सामित्तं १. दोन्हं गब्भवक्कंति पण्णत्ता, तं जहा १. मणुस्साणं चेव, २. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव । २. दोन्हं छविपव्वा पण्णत्ता, तं जहा १. मणुस्साणं चैव, २. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाण चैव। ३. दो सुक्क सोणियसंभवा पण्णत्ता, तं जहा १. मणुस्साणं चैव, २. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चैव । ४. दोन्हं गन्धत्थाणं आहारे पण्णत्ते तं जहा १. मणुस्साणं चैव, २. पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं चैव । ५. दोहं गमत्थाणं वुड्ढी पण्णत्ता, तं जहा १. मणुस्साणं चैव, २. पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं चैव । , एवं निब्बुड्ढी बिगुब्बणा, गइपरियाए समुग्धाए, कालसंजोगे आयाती मरणं । - ठाणं अ. २, उ. ३, सु. ७९ २. भवस्स चउव्विहत्त परूवणं चउव्विहे भवे पण्णत्ते, तं जहा१. णेरइयभवे, ३. मणुस्सभवे २. तिरिक्खजोणियभये, ४. देवभवे - ठाणं. अ. ४, उ. २, सु. २९४ ३. गब्भ धारणस्स विहि-णिसेह कारण परूवणंपंचहि ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणी वि गन्धं धरेज्जा तं जहा 1 १ इत्थी दुव्वियडा दुन्निसण्णा सुक्कपोग्गले अहिट्ठिज्जा, २. सुक्कपोग्गलसंसिट्ठे व से वत्थे अंतो जोणिए अणुविज्जा, ३. सई व से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा, ४. परो य से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा, ५. सीओदगवियडेण वा से आयममाणीए सुक्कपोग्गला अणुविज्जा । इच्चेएहिं पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं असंवसमाणी विगब्र्भ धरेज्जा | १ पंचहिं ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धिं संवसमाणी वि गन्धं नो धरेज्जा तं जहा " १. अप्पत्तजोव्वणा, २. अतिक्कंतजोव्वणा, ३. जातियंझा, सूत्र ३९. गर्भ अध्ययन १. गर्भ आदि पदों का स्वामित्व १. दो की गर्भव्युत्क्रान्ति होती है, यथा १. मनुष्यों की, २. दो के चर्मयुक्त पर्व १. मनुष्यों के, ३. दो शुक्र और रक्त २. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों की। (सन्धि-बन्धन) होते हैं, यथा से २. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के । उत्पन्न होते हैं, यथा२. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयौनिक आहार लेते हैं, यथा १. मनुष्य, ४. दो गर्भ में रहते हुए १. मनुष्य, ५. दो की गर्भ में रहते १. मनुष्यों की, २. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक । हुए वृद्धि होती है, यथा२. पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों की इसी प्रकार ( दो की गर्म में रहते हुए) हानि, विक्रिया, गतिपर्याय, समुद्घात, कालसंयोग, गर्भ से निर्गमन और मृत्यु होती है। २. भव के चतुर्विधत्व का प्ररूपण भव (उत्पत्ति) चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. नैरयिक भव, २ तिर्यञ्चयोनिक भव, ४. देव भव । ३. मनुष्य भव, १५४१ ३. गर्भ धारण के विधि-निषेध के कारणों का प्ररूपण पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई भी गर्भ को धारण कर लेती है, यथा १. अनावृत तथा दुर्निषण्ण (कुआसन) से बैठी हुई स्त्री के योनि- देश में शुक्रपुद्गलों का आकर्षण होने पर, २. शुक्र- पुद्गलों से संसृष्ट वस्त्र के योनि देश में प्रविष्ट हो जाने पर, ३. स्वयं अपने ही हाथों से शुक्र पुद्गलों को योनि- देश में अनुप्रविष्ट कर देने पर ४. दूसरों के द्वारा शुक्र-पुद्गलों के योनि देश में अनुप्रविष्ट किए जाने पर, ५. शीतल जल में स्नान करती हुई स्त्री के योनि - देश में शुक्र- पुद्गलों के अनुप्रविष्ट हो जाने पर। इन पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई भी गर्भ धारण कर सकती है। १. पाँच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास करती हुई भी गर्भ को धारण नहीं करती है, यथा १. पूर्ण युवती न हो तो २. विगतयौवना हो तो ३. जन्म से ही वंध्या हो तो
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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