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________________ १५४० द्रव्यानुयोग-(३) ) होता है वह एक समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। जो जीव एकतोवक्राश्रेणी से उत्पन्न होता है वह दो समय की विग्रहगति से तथा उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होने वाला जीव तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। विश्रेणि से उत्पन्न होने वाला जीव चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। मरण सतरह प्रकार का भी होता है और पाँच प्रकार भी होता है। मरण के पाँच प्रकार हैं-१. आवीचिमरण, २. अवधिमरण, ३. आत्यन्तिक मरण, ४. बालमरण और ५. पण्डित मरण। इन पाँच प्रकार के मरणों के अनेक भेदोपभेद हैं। प्रमुखतया प्रथम तीन मरणों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव इन पाँच भेदों में विभक्त किया गया है। ये द्रव्यादि सभी मरण चारों गतियों में संभव हैं। बालमरण के १२ भेद हैं-वलयमरण, वशार्तमरण आदि। इनमें विष भक्षण करके मरना, अग्नि में जलकर मरना, पानी में डूबकर मरना आदि मरण सम्मिलित हैं। पंडित मरण दो प्रकार का है१. पादपोपगमन और २. भक्त प्रत्याख्यान। पादपोपगमन मरण भी दो प्रकार का होता है-निराहार और आहार सहित। यह मरण सेवा-सुश्रूषा रहित है। भक्त प्रत्याख्यान में आहार त्याग किया जाता है किन्तु सेवा-सुश्रूषा नहीं की जाती। मृत्यु के समय शरीर में से जीव के निकलने के पाँच मार्ग कहे गए हैं-१. पैर, २. उरु, ३. हृदय, ४. सिर और ५. सर्वाङ्ग शरीर। पैरों से निर्याण करने वाला जीव नरकगामी होता है, उरु से निर्माण करने वाला तिर्यग्गामी, हृदय से निर्याण करने वाला मनुष्यगामी, सिर से निर्याण करने वाला देवगामी और सर्वांग से निर्माण करने वाला जीव सिद्धगति प्राप्त करता है। इस प्रकार इस गर्भ अध्ययन में जन्म से लेकर मरण तक की विविध जानकारियों का विशद विवेचन हुआ है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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