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________________ परिशिष्ट ३ गणितानुयोग : एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया तं सुहुमस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं । प. एएहिं सुमेहिं खेत्तपलि ओवम-सागरोवमेहिं किं पओयणं ? उ. एएहिं सुहुमेहिं पलि ओवम-सागरोवमेहिं दिट्टियाए दव्वाई मविज्जति । - अणु. सु. ३९६ ३९८ पृ. ७१८ सुरस आउट्टिकरणकालरस परूवणं सूत्र ४० (२) चउत्थस्स णं चंदसंवच्छरस्स हेमंताणं एक्कसत्तरीए राइदिएहिं. वीइकहिं सव्ववाहिराओ मंचलाओ सुरीए आउहिं करे | -सम. सम. ७१, सु. 9 पृ. ७२२ एगुणतीस राईदिय मासणामाणि सूत्र ४७ (ख) आसादे णं मासे एगुणतीसराइदिचाई राईदियग्गेणं पण्णत्ते। भदवाए में मासे एगुणतीसराइंदियाई राइदियग्गेणं पण्णत्ते। कत्तिए णं मासे एगूणतीसराइंदियाई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते । पोसे णं मासे एगुणतीसराइदियाई राईदियग्गेणं पण्णत्ते। फग्गुणं मासे एगूणतीसराइंदियाई राइदियग्गेणं पण्णत्ते । वसाहे णं मासे एगूणतीसराइंदियाई राइंदियग्गेणं पण्णत्ते । -सम. सम. २९, सु. २-८ किमाइया संचच्छराई जुगे अयणाइ संखा य परूवणंसूत्र ४७ (ग) प. किमाइआ णं भंते! संवच्छरा, किमाइआ अयणा, किमाइआ उऊ, किमाइआ मासा, किमाइआ पक्खा, किमाइआ अहोरता किमाइआ मुहुत्ता, किमाइआ करणा, किमाइआ णक्खत्ता पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! चंदाइआ संवच्छरा, दक्खिणाइया अयणा, पाउसाइआ उऊ सावणाइआ मासा, बहुलाइआ पक्खा, दिवसाइआ अहोरत्ता, रोद्दाइआ मुहुत्ता, बालवाइआ करणा, अभिजिआइआ णक्खत्ता पण्णत्ता, समणाउसो ! प. पंचसंवछरिए णं भंते! जुगे केवइआ अयणा, केवइआ उऊ, केवइआ मासा, केवइआ पक्खा, केवइआ अहोरत्ता, केवइआ मुहुत्ता पण्णत्ता ? २०२७ इन पल्यों को दस कोटाकोटि से गुणा करने पर एक सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम का परिमाण होता है। प्र. इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? उ. इन सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम और सागरोपम द्वारा दृष्टिवाद में वर्णित द्रव्यों की गणना की जाती है। सूर्य के आवृत्तिकरणकाल का प्ररूपण चौथे चन्द्र-सम्वत्सर के हेमन्त ऋतु के इकहत्तर दिन-रात बीतने पर सूर्य सर्वबाह्यमण्डल से (आभ्यंतर मण्डल की ओर) आवृत्ति करता है। उनतीस रात-दिन वाले मासों के नाम आषाढ़ मास दिन-रात की गणना से उनतीस दिन-रात का कहा गया है। भाद्रपद मास दिन-रात की गणना से उनतीस दिन-रात का कहा गया है। कार्तिक मास दिन-रात की गणना से उनतीस दिन-रात का कहा गया है। पौष मास दिन-रात की गणना से उनतीस दिन-रात का कहा गया है। फाल्गुन मास दिन-रात की गणना से उनतीस दिन-रात का कहा गया है। वैशाख मास दिन-रात की गणना से उनतीस दिन-रात का कहा गया है। युग में आदि संवत्सर कौन और अयन आदि की संख्या का प्ररूपण प्र. भंते! संवत्सरों में आदि (प्रथम) संवत्सर कौन-सा है ? अयनों में प्रथम अयन कौन-सा है ? ऋतुओं में प्रथम ऋतु कौन-सी है ? महीनों में प्रथम महीना कौन-सा है ? पक्षों में प्रथम पक्ष कौन-सा है ? दिन-रात में प्रथम कौन है ? मुहूर्तों में प्रथम मुहूर्त कौन-सा है ? करणों में प्रथम करण कौन-सा है ? नक्षत्रों में प्रथम नक्षत्र कौन-सा है ? उ. हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! संवत्सरों में चन्द्र संवत्सर प्रथम है, अयनों में दक्षिणायन प्रथम है, ऋतुओं में पावस ( आषाढ़ श्रावण रूप) ऋतु प्रथम है, महीनों में श्रावण मास प्रथम है, पक्षों में कृष्ण पक्ष प्रथम है, दिन-रात में दिवस प्रथम है, मुहूर्तों में रुद्र मुहूर्त प्रथम है, करणों में बालवकरण प्रथम है और नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र प्रथम कहा है। प्र. भंते ! पंच संवत्सरिक युग में अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरात्र तथा मुहूर्त कितने-कितने बताये गये हैं ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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