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________________ १९९८ द्रव्यानुयोग-(३) खण्डगणित के अनुसार जंबूद्वीप की खण्ड संख्या का प्ररूपण खंडगणियाणुसारेण जंबुद्दीवस्स खंड संखा परूवणंसूत्र ४ (ख) प. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भरहप्पमाणमेत्तेहिं खंडेहिं केवइयं खंडगणिएणं पण्णत्ते? उ. गोयमा ! णउअं खंडसयं खंडगणिएणं पण्णत्ते। -जंबू. वक्ख.६, सु.१५८ जंबुद्दीवस्स खेत्तफलपमाण परूवणंसूत्र ४ (ग) प. जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवइअंजोअणगणिएणं पण्णते? प्र. भंते ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के बराबर खण्ड किये जाएँ तो वे कितने कहे गए हैं ? उ. गौतम ! खण्डगणित के अनुसार वे एक सौ नब्बे कहे गए हैं। जम्बूद्वीप के क्षेत्रफल प्रमाण का प्ररूपण प्र. भंते ! योजनगणित के अनुसार जम्बूद्वीप का कितना प्रमाण (क्षेत्रफल) कहा गया है? उ. गौतम ! जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल (७,९०,५६,९४,१५0) सात अरब, नब्बे करोड़, छप्पन लाख, चौरानवे हजार, एक सौ पचास योजन का कहा गया है। जम्बूद्वीप की कलाओं का परिमाण जम्बूद्वीप नामक द्वीप की कलाएँ एक योजन के उन्नीस छेदनक (भाग रूप) कही गई हैं। निषध-नीलवंत वर्षधर पर्वतों से रत्नप्रभापृथ्वी का अंतर उ. गोयमा ! सत्तेव य कोडिसया, णउआ छप्पण्ण सय-सहस्साई। चउणवइं च सहस्सा, सयं दिबद्धं च गणिअ-पयं ॥२॥ -जंबू. वक्ख.२, सु. १५८ जंबुद्दीवस्स कला परिमाणंसूत्र ४ (घ) जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स कलाओ एगूणवीसं छेयणाओ पण्णत्ताओ। -सम.सम.१९, सु.४ पृ.२३१ निसढ-नीलवंत वासहर पव्वएहितो रयणप्पभापुढवी अंतरंसूत्र ३४३ (ख) निसढस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरिल्लाओ सिहरतलाओ इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए पढमस्स कंडस्स बहुमज्झदेसभाए एसणं नव जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं नीलवंतस्स वि। -सम.सु.९०० पृ.२३४ बाहिरिया मंदर पव्वयाणं उच्चत्तं परूवणंसूत्र ३४८ (ख) सव्वेवि णं बाहिरया मंदरा चउरासीइं-चउरासीइं जोयणसहस्साई उइढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। -सम. सम.८४, सु.१ निषध वर्षधर पर्वत के उपरितन शिखरतल से इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम काण्ड के बहुमध्यदेश भाग का अबाधा अन्तर नौ सौ योजन का कहा गया है। इसी प्रकार नीलवंत का भी अंतर जानना चाहिए। बाहर के मंदर पर्वतों की ऊँचाई का प्ररूपण वाहर के सभी मंदर पर्वत चौरासी-चौरासी हजार योजन ऊँचे कहे गए हैं। पृ.२५७ जंबुद्दीव विज्जाहराई सेढीणं अवट्टिई आगाराइ य परूवणं जम्बूद्वीप में विद्याधरादि श्रेणियों की अवस्थिति और आकारादि का प्ररूपण सूत्र ४०६ (ख) वेअड्ढस्स णं पव्वयस्स उभओ पासिं दस-दस जोअणाई उड्ढे उप्पइत्ता एत्थ णं दुवे विज्जाहरसेढीओ पण्णत्ताओपाईणपडीणाययाओ, उदीणदाहिण-वित्थिण्णाओ, दस दस जोअणाई विक्वंभेणं, पव्वयसमियाओ आयामेणं, उभओ पासिं दोहिं परमवरवेइयाहिं, दोहिं वणसंडेहिं संपरिक्खित्ताओ, ताओ णं पउमवरवेइयाओ, अद्धजोअणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंचधणुसयाई विक्वंभेणं, पब्वयसमियाओ आयामेणं, वणसंडा वि पउमवरवेइयासमगा आयामेणं। वण्णओ। वैताढ्य पर्वत के दोनों ओर दस-दस योजन की ऊँचाई पर दो विद्याधर श्रेणियाँ (आवास पंक्तियाँ) कही गई हैं। वे पूर्व-पश्चिम में लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ी हैं। उनकी चौड़ाई दस-दस योजन तथा लम्बाई पर्वत जितनी है। वे दोनों पार्श्व में दो-दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो-दो वनखण्डों से परिवेष्टित हैं। वे पद्मवरवेदिकाएँ ऊँचाई में आधा योजन, चौड़ाई में पाँच सौ धनुष तथा लम्बाई में पर्वत जितनी है। वनखण्ड भी लम्बाई में पद्मवरवेदिकाओं जितने ही हैं। उनका वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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