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________________ १९८२ द्रव्यानुयोग-(३) महावीर तीर्थ में केशी-गौतम संवाद भाग १,खण्ड २, पृ.१३४ महावीरतित्थे केसी-गोयम संवाओसूत्र २८४ (क) जिणेपासे त्ति नामेण अरहा लोगपूइओ। संवुद्धप्पा या सब्वन्नू धम्मतित्थयरे जिणे ॥१॥ तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। केसी कुमार-समणे विज्जा चरण-पारगे॥२॥ ओहिनाण-सुए बुद्धे सीलसंघ समाउले। गामाणुगामं रीयन्ते सावत्थिं नगरिमागए॥३॥ तिन्दुयं नाम उज्जाणं तम्मी नगरमण्डले। फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए॥४॥ अह तेणेव कालेणं धम्मतित्थयरे जिणे। भगवं वद्धमाणो त्ति सव्वलोगम्मि विस्सुए॥५॥ तस्स लोगपईवस्स आसि सीसे महायसे। भगवं गोयमे नाम विज्जा-चरणपारगे॥६॥ बारसंगविऊ बुद्धे सीस-संघ-समाउले। गामाणुगाम रीयन्ते से वि सावत्थिमागए॥७॥ कोट्ठगं नाम उज्जाणं तम्मी नयरमण्डले। फासुए सिज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए॥८॥ पार्श्वनाथ नामक जिन थे, जो अर्हत् लोकपूजित सम्बुद्धात्मा सर्वज्ञ धर्मतीर्थ के प्रवर्तक और रागद्वेष विजेता थे॥१॥ उन लोकप्रदीप भगवान पार्श्वनाथ के ज्ञान और चारित्र में पारगामी एवं महायशस्वी शिष्य केशीकुमार श्रमण थे॥२॥ वे अवधिज्ञान और श्रुतसम्पदा (श्रुतज्ञान) से प्रबुद्ध थे। वे अपने शिष्य संघ से समायुक्त होकर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए श्रावस्ती नगरी में आए॥३॥ उस नगर के निकट तिन्दुक नामक उद्यान में जहाँ प्रासुक (जीव रहित) और एषणीय शय्या (आवासस्थान) और संस्तारक (पीठ, फलक, पट्टा, पटिया आदि आसन) सुलभ थे वहाँ निवास किया ॥४॥ उसी समय धर्मतीर्थ के प्रवर्तक जिन भगवान वर्धमान (महावीर) विचरण करते थे। जो समग्र लोक में प्रख्यात थे॥५॥ उन लोक-प्रदीप वर्धमान स्वामी के विद्या और चारित्र के पारगामी, महायशस्वी भगवान गौतम (इन्द्रभूति) नामक शिष्य थे॥६॥ वे बारह अंगों के ज्ञाता थे, वे (गौतम स्वामी) शिष्यवर्ग सहित ग्रामानुग्राम विहार करते हुए श्रावस्ती नगरी में आए॥७॥ (उन्होंने भी) उस नगर के किनारे (बाह्यप्रदेश) में कोष्ठक नामक उद्यान में जहाँ प्रासुक शय्या और संस्तारक सुलभ थे वहाँ निवास किया ॥८॥ केशीकुमार श्रमण और महायशस्वी गौतम दोनों ही वहाँ (श्रावस्ती में) विचरते थे जो आत्मलीन और सुसमाहित (सम्यक् समाधि से युक्त) थे॥९॥ संयमी, तपस्वी, गुणवान् और षट्काय के संरक्षक उन दोनों (केशीकुमार श्रमण तथा गौतम) के शिष्य संघों में यह चिन्तन उत्पन्न हुआ-॥१०॥ हमारा यह (महाव्रतरूप) धर्म कैसा है? और इनका यह (महाव्रतरूप) धर्म कैसा है? हमारे आचारधर्म की प्रणिधि (व्यवस्था) कैसी है और इनकी कैसी है?॥११॥ यह चातुर्यामधर्म (चार महाव्रत) है, जो महामुनि पार्श्व द्वारा प्रतिपादित है और यह पंचशिक्षात्मक (पाँच महाव्रत) धर्म है, जिसका प्रतिपादन महामुनि वर्द्धमान ने किया है।॥१२॥ (वर्धमान महावीर द्वारा प्रतिपादित) यह अचेलक धर्म है और यह (भगवान पार्श्वनाथ द्वारा प्ररूपित) सान्तरोत्तर (रंगीन और बहुमूल्य वस्त्र वाला) धर्म है, एक ही कार्य के लिए हम प्रवृत्त हैं तब भेद का क्या कारण है ? ॥१३॥ उन दोनों केशी और गौतम ने अपने शिष्यों के वितर्कों को जानकर परस्पर वहीं (श्रावस्ती में ही) मिलने का विचार किया ॥१४॥ केसी कुमार समणे गोयमे य महायसे। उभओ वि तत्थ विहरिंसु अल्लीणा सुसमाहिया॥९॥ उभओ सीससंघाणं संजयाणं तवस्सिणं। तत्थ चिन्ता समुप्पन्ना गुणवन्ताण ताइणं ॥१०॥ केरिसो वा इमो धम्मो? इमो धम्मो व केरिसो ? आयारधम्मपणिही इमा वा सा व केरिसी?॥११॥ चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेण पासेण य महामुणी ॥१२॥ अचेलगो य जो धम्मो जो इमो सन्तरूत्तरो। एगकज्ज-पवन्नाणं विसेसे किं नु कारणं? ॥१३॥ अह ते तत्थ सीसाणं विनाय पवितक्कियं। समागमे कयमई उभओ केसि-गोयमा॥१४॥
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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