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________________ १९०८ द्रव्यानुयोग-(३) ७. वइ पुण्णे, ८. काय पुण्णे, ७. वचनपुण्य, ८. कायपुण्य, ९. णमोक्कार पुण्णे। -ठाणं. अ.९, सु.६७६ ९. नमस्कारपुण्य। ४२. नव सव्भावपयत्थाणं नामाणि ४२. सद्भाव पदार्थों के नव भेदों के नामनव सब्भावपयत्था पन्नत्ता,तं जहा सद्भाव पदार्थ (पारमार्थिक वस्तु) नौ कहे गए हैं, यथा१. जीवा, २. अजीवा, १. जीव, २. अजीव, ३. पुण्णं, ---- ४. पावं, ३. पुण्य, ४. पाप, ५. आसवो, ६. संवरो, ५. आश्रव, ६. संवर, ७. निज्जरा, ८. बंधो, ७. निर्जरा, ८. बंध, ९. मोक्खो । -ठाणं. अ. ९, सु. ६६५ / ९. मोक्ष। ४३. रोगप्पत्तिणव कारणा ४३. रोगोत्पत्ति के नौ कारणणवहिं ठाणेहि रोगुप्पत्ती सिया,तं जहा नौ स्थानों (कारणों) से रोगों की उत्पत्ति होती है, यथा---१. अच्चासणाए, १. निरन्तर बैठे रहना या अतिभोजन करना, २/ अहियारणाए, २. अहितकर आसन पर बैठना या अहितकर भोजन करना, ३. अइणिद्दाए, ३. अतिनिद्रा लेने से, ४. अइजागरिएणं, ४. अतिजागरण करने से, ५. उच्चारनिरोहेणं, ५. उच्चार (मल) का निरोध करने (रोकने) से, ६. पासवणनिरोहेणं, ६. प्रश्रवण का निरोध करने से, ७. अद्धाणगमणेणं, , ७. अधिक चलने से, ८. भोयणपडिकूलयाए, ८. भोजन की प्रतिकूलता से, ९. इंदियत्थविकोवणयाए। -ठाणं. अ.९,सु.६६७ ९. इन्द्रियार्थविकोपन-इन्द्रिय विषयों के अधिक सेवन करने से। ४४. णव सरीरस्स मलदार णामाणि ४४. शरीर के मल द्वारों के नौ नामणवसोयपरिस्सवा बोंदी पण्णत्ता,तं जहा शरीर से मल निकलने के नौ द्वार कहे गए हैं, यथा१-२ दो सोत्ता, ३-४ दो णेत्ता, ५-६ दो घाणा, ७, मुह १-२. दो कान, ३-४. दो नेत्र, ५-६. दो नाक, ७. मुँह, ८.पोसए,९ पाऊ। -ठाणं. अ.९,सु.६७५ ८. मूत्रेन्द्रिय, ९. गुदा। ४५. विविह विवक्खया अणंतस्स दस पगारा ४५. विविध विवक्षा से अनन्तक के दस प्रकारदसविहे अणंतए पण्णत्ते,तं जहा अनन्तक दस प्रकार का कहा गया है, यथा१. णामाणंतए, २. ठवणाणतए, १. नाम अनन्तक, २. स्थापना अनन्तक, ३. दव्वाणंतए, ४. गणणाणंतए, ३. द्रव्य अनन्तक, ४. गणना अनन्तक, ५. पएसाणतए, ६. एगओणतए, ५. प्रदेश अनन्तक, ६. एकतः अनन्तक, ७. दुहओणतए, ८. देसवित्थाराणंतए, . ७. उभयतः अनन्तक, ८. देशविस्तार अनन्तक ९. सव्ववित्थाराणंतए, १०. सासयाणंतए। ९. सर्वविस्तार अनन्तक, १०. शाश्वत अनन्तक। -ठाणं अ.१०,सु.७३० ४६. दाणनिमित्त कारणा पसवणं ४६. दान के दस निमित्त कारणों का प्ररूपणदसविहे दाणे पण्णत्ते,तं जहा दान दस प्रकार का कहा गया है, यथा१.अणुकंपा, १. अनुकम्पादान-करुणा से देना, २. संगहे चेव, २. संग्रहदान-सहायता के लिए देना, ३. भये ३. भयदान-भय से देना, ४. कालुणिए ति य। . ४. कारुण्यकदान-मृत के पीछे देना, ५. लज्जाए ५. लज्जादान-लज्जावश देना, ६. गारवेणंच, ६. गौरवदान-यश के लिए देना या गर्वपूर्वक देना, ७. अहम्मे उण सत्तमे। ... ७. अधर्मदान-हिंसा आदि में आसक्त व्यक्ति को देना,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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