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________________ १९०० ३. कज्जहेउं, ४. कयपडिकडेइ वा। -ठाणं.अ.४, उ.४,सु.३७० १६. संसारस्स चउविहत्तं चउव्विहे संसारे पण्णत्ते,तं जहा१. दव्वसंसारे, २. खेत्तसंसारे, ३. कालसंसारे, __ द्रव्यानुयोग-(३)] ३. कार्य सिद्धि के लिए अनुकूल प्रयत्न करने से, ४. उपकारी के प्रति उपकार करने से। १६. चार प्रकार का संसार संसार चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. द्रव्यसंसार-जीव और पुद्गलों का परिभ्रमण, २. क्षेत्र संसार-जीव और पुद्गलों के परिभ्रमण का क्षेत्र, ३. काल संसार-काल का परिवर्तन या काल मर्यादा के अनुसार होने वाला जीव और पुद्गलों का परिवर्तन, ४. भाव संसार-जीव और पुद्गलों के परिभ्रमण की क्रिया। १७. गति की अपेक्षा संसार के चार प्रकार संसार (जन्म मरण रूप) चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. नैरयिकसंसार, २. तिर्यक्योनिकसंसार, ३. मनुष्यसंसार, ४. देवसंसार। १८. निक्षेप-विवक्षा से सत्य के चार प्रकार सत्य चार प्रकार का कहा गया है, यथा१. नामसत्य, २. स्थापनासत्य, ३. द्रव्यसत्य, ४. भावसत्य। ४. भावसंसारे। -ठाणं. अ.४,उ.१.सु.२६१ १७. गइविवक्खया संसारस्स चउविहत्तं चउबिहे संसारे पण्णत्ते,तं जहा१. णेरइय संसारे, २.तिरिक्खजोणिय संसारे, ३. मणुस्स संसारे, ४. देव संसारे। -ठाणं. अ.४, उ.२,सु.२९४ १८. णिक्खेव-विवक्खया सच्चस्स चउप्पगारा चउव्विहे सच्चे पण्णत्ते,तं जहा१.णामसच्चे, २. ठवणासच्चे, ३. दव्वसच्चे, ३. भावसच्चे। -ठाणं.अ.४, उ.१.सु.३०८ १९. हासुप्पत्ति चउ कारणाणि चउहि ठाणेहिं हासुप्पत्ती सिया, तं जहा१. पासेत्ता, २. भासेत्ता। ३. सुणेत्ता, ४. संभरेत्ता। -ठाणं.अ.४, उ.१,सु.२६९ २०. वाही-चउप्पगारा चउव्विहे वाही पण्णत्ते,तं जहा१. वाइए, २. पित्तिए, ३. सिंभिए, ४. सन्निवाइए। -ठाणं.अ.४. उ.४,सु.३४२ २१. तिगिच्छया चउ अंगो चउव्विहा तिगिच्छा पण्णत्ता,तं जहा १. वेज्जो , २, ओसहाई ३. आउरे, ४. परिचारए। -ठाणं.अ.४, उ.४, सु.३४२ २२. तिगिच्छगस्स चउप्पगारा चत्तारि तिगिच्छगा पण्णत्ता,तं जहा- . १. आयतिगिच्छे णाममेगे,णो परतिगिच्छए, १९. हास्योत्पत्ति के चार कारण चार कारणों से हँसी आती है, यथा१. देखकर-विदूषक आदि की चेष्टाओं को देखकर, २. बोलकर-किसी के बोलने की नकल कर, ३. सुनकर-उस प्रकार की चेष्टाओं और वाणी को सुनकर, ४. स्मरण-पूर्वदृष्ट और सुनी हुई बातों को यादकर। २०. व्याधि के चार प्रकार व्याधि चार प्रकार की कही गई हैं, यथा... १. वातिक-वायुविकार से होने वाली, २. पैत्तिक-पित्तविकार से होने वाली, ३. श्लैष्मिक-कफविकार से होने वाली, ४. सान्निपातिक-तीनों के मिश्रण से होने वाली। २१. चिकित्सा के चार अंग चिकित्सा के चार अंग कहे गए हैं, यथा१. वैद्य, २. औषध, ३. रोगी, ४. परिचारक। २२. चिकित्सक के चार प्रकार चिकित्सक चार प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. कुछ चिकित्सक अपनी चिकित्सा करते हैं परन्तु दूसरों की नहीं करते, २. कुछ चिकित्सक दूसरों की चिकित्सा करते हैं परन्तु अपनी नहीं करते, २. परतिगिच्छे णाममेगे, णो आयतिगिच्छए,
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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