SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 435
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८९० द्रव्यानुयोग-(३) ) प. जस्स णं भंते ! कम्मगसरीरस्स देसबंधए से णं भंते! प्र. भन्ते ! जिस जीव के कार्मणशरीर का देशबन्ध है तो भन्ते! ओरालियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए? क्या वह औदारिक-शरीर का बन्धक है या अबन्धक है ? उ. गोयमा ! जहा तेयगस्स वत्तव्वया भणिया तहा उ. गौतम ! जिस प्रकार तैजस शरीर का कथन किया है, उसी कम्मगस्स वि भाणियव्वा जाव तेयासरीरस्स जाव प्रकार कार्मणशरीर का भी तैजस शरीर पर्यन्त देशबन्धक देसबंधए,नो सव्वबंधए। है, सर्वबन्धक नहीं है कहना चाहिए। -विया. स.८, उ.९, सु. १२०-१२८ १२७. पंच सरीराणं बंधगाबंधगाणं अप्पाबहुयं १२७.पाँच शरीरों के बन्धक अबन्धकों का अल्पबहुत्वप. एएसि णं भंते ! जीवाणं ओरालिय-वेउव्विय-आहारग- प्र. भन्ते ! इन औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस् और तेया-कम्मासरीरगाणं देसबंधगाणं सव्वबंधगाणं कार्मण शरीरों के देशबन्धक, सर्वबन्धक और अबन्धक अबंधगाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! १. सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स उ. गौतम ! १. सबसे अल्प आहारकशरीर के सर्वबन्धक सव्वबंधगा, जीव हैं, २. तस्स चेव देसबंधगा संखेज्जगुणा, २. (उनसे) उसी (आहारकशरीर) के देशबन्धक जीव ___ संख्यातगुणे हैं, ३. वेउव्वियसरीरस्स सव्वबंधगा असंखेज्जगुणा, ३. (उनसे) वैक्रिय शरीर के सर्वबन्धक असंख्यातगुणे हैं, ४. तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा, ४. (उनसे) उसी (वैक्रियशरीर) के देशबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं, ५. तेया-कम्माणं दुण्ह वितुल्ला अबंधगा अणंतगुणा, ५. (उनसे) तैजस् और कार्मण, इन दोनों शरीरों के अबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं और ये दोनों परस्पर तुल्य हैं, ६. ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अणंतगुणा, ६. (उनसे) औदारिकशरीर के सर्वबन्धक जीव अनन्त गुणे हैं, ७. तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया, ७. (उनसे) उसी (औदारिकशरीर) के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं, ८. तस्स चेव देसबंधगा असंखेज्जगुणा, ८. (उनसे) उसी (औदारिकशरीर) के देशबन्धक असंख्यातगुणे हैं, ९. तेया-कम्मगाणं देसबंधगा विसेसाहिया, ९. (उनसे) तैजस् और कार्मणशरीर के देशबन्धक जीव विशेषाधिक हैं, .१०. वेउव्वियसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया, १०. (उनसे) वैक्रियशरीर के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं, ११. आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया। ११. (उनसे) आहारकशरीर के अबन्धक जीव -विया. स.८, उ.९, सु.१२९ विशेषाधिक हैं। १२८. घाणसहगयपोग्गलाणं घाणवहण परूवणं १२८. घ्राणेन्द्रिय से संलग्न पुद्गलों के घ्राणग्राह्यत्व का प्ररूपणप. अह भंते ! कोट्ठपुडाण वा जाव केयईपुडाण वा प्र. भन्ते ! कोई व्यक्ति यदि खुले हुए कोष्ठपुटों (सुगन्धित द्रव्य अणुवायंसि उब्भिज्जमाणाणं वा जाव ठाणाओ वा ठाणं के पुड़े) यावत् केतकी (पुष्प) पुटों को एक स्थान से दूसरे संकामिज्जमाणाणं किं कोठेवाइ जाव केयईवाइ? स्थान पर ले जाए तब क्या कोष्ठपुट यावत् केतकी पुट बहते हैं या गन्ध बहता है? उ. गोयमा ! नो कोठेवाइ जाव नो केयईवाइ, उ. गौतम ! कोष्ट पुट यावत् केतकी पुट नहीं बहता, घाणसहगया पोग्गला वहति। -विया. स. ६, उ. ६, सु.३६ ____ गंध के जो पुद्गल हैं वे बहते हैं। १२९. चउवीसदंडएसु आहारियाइ पोग्गलाणं परिणयाइ १२९. चौबीसदण्डकों में आहारिक पुद्गलों के परिणतादि का परूवणं प्ररूपणप. नेरइयाणं भंते !१. पुव्वाहारिया पोग्गला परिणया? प्र. भन्ते ! १. नैरियकों द्वारा पहले आहार किये हुए पुद्गल परिणत हुए? २. आहारिया आहारिज्जमाणा पोग्गला परिणया? २. आहार किये हुए तथा आहार किये जाते हुए पुद्गल परिणत हुए?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy