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________________ १८८० प. मणुस्सपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोग बंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा ! एवं चेव। प. असुरकुमारभवणवासिदेवपंचिंदियवेउव्विय सरीरप्पयोग बंधेणं भंते !कस्स कम्मस्स उदएणं? उ. गोयमा !जहा रयणप्पभापुढवि नेरइया। एवं जाव थणियकुमारा। एवं वाणमंतरा। एवं जोइसिया। एवं सोहम्मकप्पोवगया वेमाणिया एवं जाव अच्चुय कप्पोवगया वेमाणिया। गेवेज्जकप्पाईया वेमाणिया एवं चेव। अणुत्तरोववाइयकप्पाईया वेमाणिया एवं चेव। प. वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! किं देसबन्धे, सव्वबन्धे? उ. गोयमा ! देसबंधे वि, सव्वबंधे वि। उ. वाउक्काइयएगिंदिय वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे, सव्वबंधे? उ. गोयमा ! एवं चेव। प. रयणप्पभापुढविनेरइयवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे सव्वबंधे? उ. गोयमा ! एवं चेव। एवं जाव अणुत्तरोववाइया। -विया. स.८, उ. ९, सु. ५१-६५ ११९. वेउव्वियसरीरप्पयोग बंधस्स ठिई परूवणं प. वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिर होइ? उ. गोयमा ! सव्वबंधे जहण्णेणं एक्कं समय, उक्कोसेणं दो समया। देसबंधे जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं समयूणाई। प. वाउक्काइयएगिंदियवेउव्विय सरीरप्पयोग बंधे णं भंते! कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहणणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहत्तं। प. रयणप्पभापुढविनेरइय वेउव्विय सरीरप्पयोगबंधे णं भंते !कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहण्णेणं दसवाससहस्साई तिसमयूणाई, उक्कोसेणं सागरोवमं समयूणं। एवं जाव अहेसत्तमा। द्रव्यानुयोग-(३) प्र. भंते ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! पूर्ववत् जान लेना चाहिए। प्र. भंते ! असुरकुमार-भवनवासीदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध किस कर्म के उदय से होता है? उ. गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक का कथन किया है उसी प्रकार कहना चाहिए। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। इसी प्रकार वाणव्यन्तर देवों के लिए भी कहना चाहिए। इसी प्रकार ज्योतिष्कदेवों के विषय में भी जानना चाहिए। इसी प्रकार सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से अच्युतकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों पर्यंत के लिए जानना चाहिए। ग्रेवेयक-कल्पातीत वैमानिक देवों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिक देवों के विषय में भी पूर्ववत् जान लेना चाहिए। प्र. भंते ! वैक्रिय शरीरप्रयोगबन्ध क्या देश बन्ध है या सर्वबन्ध है? उ. गौतम ! वह देश बन्ध भी है और सर्वबन्ध भी है। प. भंते ! वायुकायिक एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। प्र. भंते ! रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है? उ. गौतम ! पूर्ववत् जानना चाहिए। इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक कल्पातीत वैमानिक देवों पर्यन्त जानना चाहिए। ११९. वैक्रिय शरीर प्रयोग बन्ध की स्थिति का प्ररूपण प्र. भंते ! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध काल कितने काल तक होता है? उ. गौतम ! इसका सर्वबन्ध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट दो समय तक होता है। देशबन्ध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक होता है। प्र. भंते ! वायुकायिक-एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर प्रयोगबन्ध काल कितने काल तक होता है? उ. गौतम ! इसका सर्वबन्ध एक समय तक होता है, देशबन्ध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक होता है। प्र. भंते ! रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिक-वैक्रियशरीर-प्रयोगबन्ध काल कितने काल तक होता है? उ. गौतम ! इसका सर्वबन्ध एक समय तक होता है, देशबन्ध जघन्य तीन समय कम दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्ट एक समय कम एक सागरोपम तक होता है। इसी प्रकार अधःसप्तम नरकपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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