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________________ १८७२ द्रव्यानुयोग-(३) १. धम्मत्थिकायअन्नमन्नअणाईयवीससाबंधे, २. अधम्मत्थिकायअन्नमन्नअणाईयवीससाबंधे, ३. आगासत्थिकायअन्नमन्नअणाईयवीससाबंधे। प. धम्मस्थिकायअन्नमन्नअणाईयवीससाबंधे णं भंते ! किं देसबंधे ? सव्वबंधे? उ. गोयमा ! देसबंधे, नो सव्वबंधे। एवं अधम्मत्थिकायअन्नमन्त्रअणाईयवीससाबंधे वि, एवं आगासत्थिकायअन्नमन्नअणाईयवीससाबंधे वि। प. धम्मत्थिकायअन्नमन्नअणाईयवीससाबंधे णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ? उ. गोयमा ! सव्वद्धं। एवं अधम्मत्थिकाए, एवं आगासत्थिकाए। का प. साईयवीससाबंधेणं भंते ! कइविहे पण्णते? उ. गोयमा !तिविहे पण्णत्ते,तं जहा १. बंधणपच्चइए,२.भायणपच्चइए, ३. परिणामपच्चइए। प. से किं तं बंधणपच्चइए? उ. बंधणपच्चइए, जं णं परमाणुपुग्गला दुपएसिय तिपएसिय जाव दसपएसिए संखेज्जपएसियअसंखेज्जपएसिय-अणंतपएसियाणं खंधाणं-वेमायनिद्धयाए वेमायलुक्खयाए वेमायनिद्ध-लुक्खयाए बंधणपच्चइएणं बंधे समुप्पजइ, से जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज कालं, १. धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक विश्रसाबन्ध, २. अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक विश्रसाबन्ध, ३. आकाशास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक विश्रसाबन्ध। प्र. भंते ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विश्रसाबन्ध क्या देशबन्ध है या सर्वबन्ध है? उ. गौतम ! वह देशबन्ध है, सर्वबन्ध नहीं है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के अन्योन्य- अनादिविश्रसाबन्ध के लिए कहना चाहिए। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के अन्योन्य- अनादि विश्रसाबन्ध के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! धर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादि-विश्रसाबन्ध कितने काल तक रहता है? उ. गौतम ! सर्वकाल रहता है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय एवं आकाशास्तिकाय के (अन्योन्य-अनादि-विश्रसाबन्ध) के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! सादिक-विश्रसाबन्ध कितने प्रकार का गया है? उ. गौतम ! वह तीन प्रकार का कहा गया है, यथा १. बन्धन प्रत्ययिक, २. भाजन प्रत्ययिक, ३. परिणाम प्रत्ययिक। प्र. भंते ! बन्धन-प्रत्ययिक (सादिविश्रसाबन्ध) किसे कहते हैं ? उ. गौतम ! परमाणु पुद्गल द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक यावत् दशप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक पुद्गल-स्कन्धों का विषम स्निग्धता, विषम रूक्षता और विषम स्निग्ध रूक्षता से जो बन्ध होता है उसे बन्धन प्रत्ययिक बंध कहते हैं। वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है। यह बन्धन-प्रत्ययिक (सादि-विश्रसाबन्ध) का स्वरूप है। प्र. भंते ! भाजन-प्रत्ययिक-(सादि-विश्रसाबन्ध) किसे कहते हैं ? उ. गौतम ! पुरानी मदिरा, पुराने गुड़ और पुराने चावलों का पात्र के निमित्त से जो बंध होता है उसे भाजन-प्रत्ययिक बंध कहते हैं। वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है। यह भाजन-प्रत्ययिक (सादि-विश्रसाबन्ध) का स्वरूप है। प्र. भंते ! परिणामप्रत्ययिक-सादि-विश्रसाबन्ध किसे कहते हैं ? उ. गौतम ! बादलों अभ्रवृक्षों यावत् अमोघों आदि का परिणाम-प्रत्ययिक बंध होता है। वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक रहता है। यह परिणाम-प्रत्ययिक विश्रसाबन्ध का स्वरूप है। यह सादि-विश्रसाबन्ध का स्वरूप है। यह विश्रसाबन्ध का कथन हुआ। ११२. प्रयोमबन्ध के भेद-प्रभेदों का प्ररूपण प्र. भंते ! प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का है? उ. गौतम ! प्रयोगबन्ध तीन प्रकार का कहा गया है, यथा से तंबंधणपच्चइए। प. से किं तं भायणपच्चइए? उ. भायणपच्चइए, जं णं जुण्णसुरा-जुण्णगुल जुण्णतंदुलाणं भायणपच्चइएणं बंधे समुप्पज्जइ, से जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं,उक्कोसेणं संखेज्जकालं, से तं भायणपच्चइए। प. से किं तं परिणामपच्चइए? उ. परिणामपच्चइए, जं णं अब्भाणं अब्भरुक्खाणं जाव अमोहाणं परिणामपच्चइएणं बंधे समुप्पज्जइ, से जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। से तं परिणामपच्चइए। सेतं साईयवीससाबंधे। सेत्तं वीससाबंधे। -विया. स.८, उ.९, सु.२-११ ११२. पयोगबंधस्स भेय-प्पभेय परूवणं प. से किं तं पयोगबंधे? उ. पयोगबंधे तिविहे पण्णत्ते,तं जहा
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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