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________________ पुद्गल अध्ययन - १८५१ ) उ. गौतम ! वे सदैव निष्कम्पक रहते हैं। प्र. भंते ! द्विप्रदेशी स्कन्ध देश कम्पक कितने काल तक रहते हैं ? उ. गौतम ! वे सदैव देशकम्पक रहते हैं। प्र. भंते ! द्विप्रदेशी स्कन्ध सर्वकम्पक कितने काल तक रहते हैं ? उ. गौतम ! वे सदैव सर्वकम्पक रहते हैं। प्र. भंते ! द्विप्रदेशी स्कन्ध निष्कम्पक कितने काल तक रहते हैं ? उ. गौतम ! वे सदैव निष्कम्पक रहते हैं। इसी प्रकार अनन्तप्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त जानना चाहिए। ८७. सर्वकम्पक-देशकम्पक-निष्कम्पक परमाणु पुद्गल स्कन्धों के अन्तर काल का प्ररूपणप्र. भंते ! सर्वकम्पक परमाणु पुद्गल का अन्तर काल कितना है? उ. गोयमा ! सव्वद्ध। प. दुपएसिया णं भंते ! खंधा देसेया कालओ केवचिरं होंति? उ. गोयमा ! सव्वद्ध। प. दुपएसिया णं भंते ! खंधा सव्या कालओ केवचिरं होति? उ. गोयमा ! सव्वद्ध। प. दुपएसिया णं भंते ! खंधा निरेया कालओ केवचिरं होंति? उ. गोयमा ! सव्वद्ध। एवं जाव अणंतपएसिया। -विया.स. २५, उ.४,सु.२१७-२२८ ८७. सव्वेय देसेय निरेय परमाणुपोग्गल खंधाणं अंतरकाल परूवणंप. परमाणु पोग्गलस्स णं भंते ! सव्वेयस्स केवइयं कालं अंतर होइ? उ. गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, परट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेण असंखेज्जं कालं। प. परमाणु पोगलस्स णं भंते ! निरेयस्स केवइयं कालं अंतरं होइ? उ. गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ भागं, परट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं। प. दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स देसेयस्स केवइयं कालं अंतरं होइ? उ. गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, परट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं। प. दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स सव्वेयस्स केवइयं कालं अंतरं होइ? उ. गोयमा ! जहा देसेयस्स। उ. गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर है। परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यातकाल का अन्तर है। प्र. भंते ! निष्कम्पक परमाणु-पुद्गल का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग का अन्तर है। परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर है। प्र. भंते ! देशकम्पक द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर है? परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल का अन्तर है। प्र. भंते ! सर्वकम्पक द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तर काल कितना है? उ. गौतम ! जिस प्रकार देशकम्पक का अन्तर काल कहा उसी प्रकार सर्वकम्पक का भी जानना चाहिए। प्र. भंते ! निष्कम्पक द्विप्रदेशी स्कन्ध का अन्तर काल कितना है? प. दुपएसियस्स णं भंते ! खंधस्स निरेयस्स केवइयं कालं अंतरं होइ? उ. गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं, परट्ठाणंतरं पडुच्च जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं। एवं जाव अणंतपएसियस्स। उ. गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग का अन्तर है। परस्थान की अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल का अन्तर है। इसी प्रकार अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त अन्तर काल जानना चाहिए। प्र. भंते ! (अनेक) सर्वकम्पक परमाणु-पुद्गलों का अन्तर काल कितना है? प. परमाणु पोग्गला णं भंते ! सव्वेयाणं केवइयं कालं अंतर होइ?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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